कल रात 20 मई को इंदौर से लौटा तो भाेपाल के हबीबगंज थाना चौराहे पर लगी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की प्रतिमा को पानी से धोया जा रहा था। आज 21 मई को सुबह 11 बजे इसी चौराहे से फिर गुजरा तो प्रतिमा पर पुष्पांजलि कार्यक्रम हो चुका था, सामने सड़क पर लगे शामियाने में खाली कुर्सियां उठाने में एक दर्जन पुलिस कर्मी जुटे थे। राजीव गांधी की पुण्य तिथि से 27 साल पुरानी वो दहलाने वाली घटना जीवंत हो उठी, जिसकी खबर ने 22 मई की अलसुबह भारत ही नहीं समूची दुनिया को सन्न कर दिया था। मैं भी इसमें शामिल था, लेकिन मेरे लिए यह खबर एक अलग अर्थ में भी स्मरणीय है। वो मुहं से अचानक निकल वाक्य सच होना..... मई का महीना था, परीक्षाओं के बाद छुट्टियां और हमारे शहर गंजबासौदा में दोस्तों का समूह रोज अलसुबह बेतवा में तैराकी के लिए जाता था। जो पहले जाग जाए वो बाकी साथियाें को जगाने पहुंचता था। उस भोर में मैँ अपने कमरे मे गहरी नींद में था, मित्र संदीप दुबे ने जोर जोर से खिड़की भड़भड़ाई तो मैं उठ गया। उठते ही संदीप ने पूछा- खतरनाक खबर है यार, मैं नींद में था, मैंने अनायास यह कहा कि क्या हो गया क्या राजीव गांधी की हत्या हो गई? संदीप रेडियो पर बीबीसी हिंदी पर खबर सुनकर आए थे, और मैं नींद से उठा था, कुछ पता ही नहीं था, लेकिन कैसे यह बात मेरे मुहं से निकली, संदीप भी और मैं भी अवाक। संदीप ने बताया कि हां यही खबर सुनकर आया हूं। उस रोज बेतवा नहीं गए। पूरा देश शोक में था। सौम्य सुदर्शन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का इस तरह कत्ल पूरे मुल्क को हिला गया। बाद में जब 23 मई के अखबारों में उनकी हत्या की वारदात की विस्तृत खबरें और फोटो प्रकाशित हुए, राजीव जी को उनके जूतों से पहचाना जा सका। श्रीलंका में बागी भारतीय मूल के तमिलों के खिलाफ भारतीय सेना को शांति सेना के नाम पर भेजने से खफा तमिल चरमपंथियों के समर्थकों ने यह पूरा कांड किया था। माता की हत्या से उपजी सहानुभूति लहर में भारी बहुमत से प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी असल में प्रधानमंत्री बनना ही नहीं चाहते थे। उनकी पत्नी भी नहीं चाहती थीं कि वे प्रधानमंत्री बनें,उन्हें आशंका थी कि सास की तरह पति का भी ऐसा अंत न हो, लेकिन कहते हैं होनी को कौन टाल सका है, राजीव गांधी भी अपनी मां की हत्या के बाद सिखों के नरसंहार के बीच न चाहते हुए भी प्रधानमंत्री बने थे। सहानुभूति लहर में अतिप्रचंड बहुत से बनाई सरकार के कार्यकाल में उन्होंने भारत को कंप्युटर युग में प्रवेश कराया और वे खुद को ऐसे शख्स के तौर पर याद करने की मंशा रखते थे, जिसने भारत को विकासशील की पांत से निकालकर विकसित देशों की श्रेणी में ला खड़ा किया। यह सपना वे अपनी पांच साल की सरकार के दौरान न कर पाए, उनकी सरकार पांच साल के बाद दोबारा न बन सकी। गैर कांग्रेसवाद के भारी होने के दिन थे, उनकी सरकार के वित्त मंत्री वीपी सिंह प्रधानमंत्री बने और राजीव गांधी की हत्या के बाद पीवी नरसिंहराव आए। फिर भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी की छह साल की सरकार रही। फिर राजीव की पत्नी सोनिया गांधी के नेतृत्व वाले यूपीए की लगातार दो बार सरकार और इसके बाद प्रचंड बहुमत के साथ भाजपा की मोदी सरकार के चार साल। भारत अब भी विकसित देशाें की पांत में शामिल होने के लिए प्रयासरत है। राजीव गांधी का श्रीलंका में शांति सेना भेजना आत्मघाती कदम बना,इसके अलावा उन्होंने शाहबानो मामले में कोर्ट का फैसला संसद में पलटने का कदम उठाया था, उससे कांग्रेस अब तक निजात नहीं पा सकी है। राजीव जी के जाने के 27 साल बाद भी उनके पुत्र को मंदिर मंदिर जाना पड़ रहा है, लेकिन तुष्टिकरण का असर जाने का नाम नहीं ले रहा। राजीव ने भी कांग्रेस को आजादी के पहले की ही तरह कांग्रेस को हिंदुओं की जमात बनाने की एक बार कोशिश की थी। अयोध्या में विवादित राम जन्मभूमि मंदिर के ताले खुलवाए थे। यह दांव उनके पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक के खत्म होने का कारण बन गया। उप्र में कांग्रेस अब किस हालत में है, किसी से छुपा नहीं है। हाल ही में दो लोकसभा चुनाव में उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई। उसी उप्र में जहां इलाहाबाद में राजीव के नाना-परनाना नेहरूओं के घर से देश की सियासत चलती थी,आजादी के पहले भी और बाद में भी इस घराने का दबदबा रहा। जो अब लोकसभा में 46 सीट पर सिमट गया है। आज राजीव गांधी को याद करने का दिन है। उनकी नृसंशा हत्या आज भी झकझोर देती है, लेकिन सियासत और उसके फैसले ऐसी घटनाओं की बार बार आवृत्ति करती हैँ। कांग्रेसियों को आज राजीव को कैसे याद करना चाहिए? यह सवाल सियासी जानकारों के मंथन का है। मुझे लगता है-कांग्रेस को न केवल राजीव बल्कि इंदिरा और नेहरू जी की गल्तियों से सबक लेना चाहिए। उनके अच्छे फैसलों को जनमानस में फिर ताजा करना चाहिए और जिन वजहों से देश में ताकतवर विपक्ष की भूमिका भी क्षीण हुई है, उन्हें दूर कर ताकतवर विपक्ष बनना चाहिए। लेकिन कांग्रेस ताकतवर विपक्ष बनने के बजाय सत्ता में लौटने की सीधी जुगत की तलाश में ज्यादा लगी है। ऐसे में जनता के सामने प्रचंड ताकत वाली सत्ता है और बिना विपक्ष बने सत्ता में आने के लिए तत्पर कमजोर विपक्ष है। राजीव जी के शब्द आज भी कानों में गूंजते हैं- हमने देखा,हम देख रहे हैं, हम देखेंगे......
- सतीश एलिया
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