शनिवार, 11 फ़रवरी 2012

1 टिप्पणी:

ashishdeolia ने कहा…

मेरे पास भी ऐसे अनमोल पत्रों का खजाना भरा पडा है जो कभी दोस्‍तों से मिला था। खुद मैनें बाहर रहते हुए जो खत घर भेजे थे, वो भी इस खजाने में शामिल हैं। चालीस, पचास साल पहले पिताजी के पत्रों का पुलिंदा भी संभालकर रखा है मगर अफसोस, सालों हो गये, ये खजाना जस का तस है, इसमें आखिरी खत भी शायद आपका ही है, कोई पांचेक साल पहले का। याद कीजिये।