शुक्रवार, 29 अप्रैल 2011

बेशर्मी इज द बेस्ट पॉलिसी के प्रवर्तक से मुलाकात

सबसे पहले तो इस शीर्षक के लिए ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी के प्रवर्तकों, फालोअरों और पक्षधरों से क्षमायाचना करता हूं, जैसे कि पूर्वज गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखने की शुरूआत में वंदउ खलव्रंद कहते हुए दुष्टों को नमन किया था, क्योंकि गुसांई जी का मानना था कि उनकी कृपा के बिना मानस का लेखन नहीं हो पाता। तो मित्रों मैं ईमानदारी के झंडाबरदारों से क्षमा याचना करते हुए नए जमाने की नई बात यानी नए युग के स्लोगन बेशर्मी इज द बेस्ट पॉलिसी के प्रमोशन के लिए आपसे रूबरू हूं। क्यांेकि वो जमाना लद चुका है जब ईमानदारों की कद्र होती थी, मेरी बात को यूं समझें कि अब लाल साबुन से नहाने और तंदुरूस्त रहने के विज्ञापनों का जमाना लद गया है और संदल समेत एक दर्जन खुश्बुओं में आने वाले साबुनों का जमाना है। इस नए स्लोगन के प्रमोशन के लिए मैं क्यों आगे आया इसकी भी रोचक और प्रेरक दास्तां है। मेरे एक परिचित हैं, मित्र कहलाने लायक कोई योग्यता उनमें न तो है और न ही वे इस तरह की वाहियात बातों में यकीन ही रखते हैं। उनकी खूबी ये है कि वे सफल हैं, और उसकी जड. वे बेशर्मी को मानते हैं, गुनते हैं और धारण करते हैं। वे शरीर विज्ञान की इस धारणा के भी खिलाफ हैं कि रीढ. की हडडी शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, वे यहां तक मानते हैं कि इसकी जरूरत ही क्या है! तो जनाब वे कहते हैं सफल होने के लिए चमचागिरी महत्वपूर्ण गुर है, लेकिन मूल मंत्र तो बेशर्मी है। एक दफा यह जीवन का अविभाज्य अंग बन जाए तो चमचागिरी, चुगलखोरी, टांग खिंचाई इत्यादि सहयोगी गुणों के जरिए सफलता मिल ही जाती है। उनका जीवन प्रत्यक्षं किं प्रमाणं की तरह मेरे सामने है। अपेक्षाकृत कम शिक्षित, कम अक्ल और अविश्वसनीय होने के बावजूद वे न केवल सफल हैं, बल्कि राह में आने वाले हर किस्म के रोड.े को हटाने में सक्षम हैं। उनकी पूरी सफलता में अहम किरदार बेशर्मी का ही है। वे अपनी कीर्ति के ऐसे ऐसे किस्से सहजता से सुनाते रहते हैं कि सुनने वाले हर शख्स की आंखों में परिहास की चमक कौंध जाती है, वे इसे भांप लेते हैं, जान लेते हैं लेकिन इस सबके बावजूद उन्हें इस सबसे कोई फर्क नहीं पड.ता, इसीलिए तो वे सफल हैं। जब केंद्र में फिर यूपीए की सरकार आई थी तो वे बोले देखा बेशर्मी ही सफलता का एकमात्र पैमाना है, हमने कहा कैसे! तो कहने लगे लोकतंत्र में परिवारवाद को कोई जगह नहीं होना चाहिए, हमने कहा हां, वे बोले, लेकिन हकीकत में क्या है, नेहरू जी के कुनबे से चार सांसद चुने गए, इनमें से राहुल सुपर पीएम और सोनियाजी अल्ट्रा सुपर पीएम हैं। फारूख अब्दुल्ला और उनके दामाद सचिन पायलट मंत्री बन गए, बेटा उमर पहले ही मुख्यमंत्री बन चुके हैं। करूणानिधि मुख्यमंत्री, बेटा एम स्टालिन उपमुख्यमंत्री, दामाद एवं भानजा दयानिधि मारन केंद्र में मंत्री, बेटा अझागिरी भी केंद्र में मंत्री, बेटी कणिमोझी को मंत्री नहीं बनवा पाए तो क्या उनके लिए और कोई पद दिला देंगे। संगमा की बेटी अगाथा भी मंत्री बन गई।
मैंने पूछा ईमानदारी इज बेस्ट पॉलिसी को खारिज करने का इस वंशवाद से क्या ताल्लुक! वे बोले, ताल्लुक है। वो ये कि जो होना चाहिए वह नहीं होना ही सफलता है, इसी तरह ऑनेस्टी इज द बेस्ट पॉलिसी होना चाहिए के पीछे पड.े रहोगे तो सफल कैसे होगे? सफलता पाना है तो बेशर्मी इज बेस्ट पॉलिसी पर अमल करो, भले ही हर ओर दफतर की दीवाल पर ऑनेस्टी की तारीफ वाला स्लोगन लिखवा लो और उसे रोज अगरबत्ती भी लगाओ, लेकिन उसे दिल में मत बसाओ। दिल में जो बसा हो उसका जिक्र भी कोई करता है भला। श्रीमान सफल के इस दर्शन ने मुझे झकझोरा डाला, लेकिन मेरे शरीर के वर्तमान डीएनए में तो इस पर अमल मेरे लिए नितांत असंभव लग रहा है, इसलिए में उनके प्रभावी भाषण से हिल गया हूं। मैं असपफल ही रहना चाहता हूं, हो सकता है यही मेरी नियति हो। इस कथा ने आपके मन में भी हलचल मचाई हो तो लिखिएगा जरूर, आमीन!

1 टिप्पणी:

राज भाटिय़ा ने कहा…

सहमत हे जी आप की इस पालिसी से, लेकिन हम अपना नही सकते, क्योकि यह हमारे जींस मे शामिल नही इसी लिये विदेशो मे रोटी के लिये धक्के ख रहे हे