बुधवार, 13 अप्रैल 2011

अन्ना से कौन डरता है उर्फ अन्ना से हम सब डरते हैं

शनिवार की रात करीब 11 बजे मेरे गृहनगर से एक अजीज दोस्त का फोन आया, वह बिना किसी भूमिका के सीधे मूल बात या सवाल पूछने के लिए कुख्यात है, मेरी ही तरह, शायद इसी वजह से मेरा दोस्त है। तो उसने पूछा क्यों सतीश, ये अन्ना हजारे क्या दूध के धुले हैं? मैंने भी बिना किसी भूमिका के पलटवार किया कि नहीं अन्ना का तो पता नहीं आडवाणी से लेकर प्रभात झा तक और सोनिया से लेकर दिगविजय और रामदेव से लेकर सिब्बल तक कोई दूध के धुले नहीं हैं। इसलिए अन्ना का अभी विरोध भले न करें लेकिन बाद में सब एकसुर से बोलेंगे जैसे सांसदों, विधायकों के वेतन भत्ते बढ़वाने के मामले में एकजुट रहते हैं, दलों की राजनीति से उपर। मित्र चुप होगया, अर्थात फोन डिसकनेक्ट हो गया। असल में मेरा मित्र इन दिनों पार्षद पति है, अर्थात उसकी पत्नी को भाजपा की ओर से ेटिकिट मिला और मेहनती, कर्मठ और अच्छी छवि वाला दोस्त पार्षद पति बन गया, हालांकि सभी उसी को बतौर पार्षद तवज्जो देते हैं, उस शहर में अभी तीन पार्षद पति हैं, इसके पहले नगरपालिका अध्यक्ष पति भी शहर के भागय विधाता रह चुके हैं। खैर यहां मैं मित्रनिंदा का पापकर्म करने के बजाय असल बात पर आना चाहता हूं। क्योंकि जो बात दो दिन पहले मेरा मित्र कह रहा था, लगभग वही बात दूसरे शब्दों में लालकृष्ण आडवाणी ने ब्लॉग में लिखी और बड़बोले मप्र भाजपा प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने कह दी। अन्ना ईमानदारी का प्रमाणपत्र बांटने वाले विवि नहीं हैं। यही अन्ना संघ कुनबे और भाजपा को दो दिन पहले भा रहे थे क्योंकि नरेंद्र मोदी और नितीश कुमार की तारीफ कर रहे थे। अब यह विचित्र राजनीति है कि नितीश बिहार चुनाव के वक्त मोदी को बिहार में आने नहीं देने पर आमादा थे। खैर अन्ना दूध के धुले हैं क्या? यह सवाल एक पार्षद पति पूछे कि वे विवि हैं क्या, यह सवाल प्रभात झा पूछें या फिर दिगिवजय सिंह अन्ना पर सवाल उठाएं। इन सबका मकसद एक ही है कि जिस राजनीतिक भ्रष्ट तंत्र के सहारे उनका राजनीतिक कैरियर परवान चढ़ा उसे वे कैसे एक आदमी के हाथों स्खलित होते देख सकते हैं। मैं किसी एक दल या नेता की बात नहीं कर रहा, जिसके लिए राजनीति सत्ता पाने और उसका बेजा इस्तेमाल करने, कमाउ धंधे की तरह है, वह बना बनाया सिस्टम टूटने की कल्पना कैसे कर सकता है? मेरे दोस्त ने मुझे ईमानदारी से बताया कि डेढ़ लाख रुपए खर्च हुए तब चुनाव जीत पाए थे, अब तक 10 प्रतिशत भी हिसाब बराबर नहीं हो पाया, ऐसे में कोई ईमानदारी की बात करता है तो लगता है,दिवालिया करना चाहता है हमें। अब सोचिए जो प्रदेश अध्यक्ष बना है, राष्ट्रीय महासचिव बना है, मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बना है, किस बूते, किस खर्चे और किस तरह के समझौते से बना होगा। ऐसे में अब पूरा भ्रष्टाचार मिटा डालने पर तुल जाओगे तो शुरूआती जन समर्थन के बाद सियासी तंत्र का विरोध झेलना ही पड़ेगा। अन्ना साहब आखिर लोगों को अपनी रोज रोटी और मीडिया को कोई दूसरा तमाशा ढूंढना ही पड़ेगा, अगर ऐसा नहीं होता तो आपको अनशन करने की जरूरत ही क्यों पड़ती। गांधी के आंदोलन का हमने क्या किया? जेपी का क्या किया? आपका भी वही करेंगे। मध्य वर्ग को चीयर अप कर सकता है, लेकिन कुछ देर, बाकी उसका विश्व कप, आईपीएल इत्यादि ही व्यस्त रखते और भाते हैं। चंद एनजीओ उनमें भी ज्यादातर आपके नाम पर अपनी दुकान जमाने के इच्छुक थे, इस शमां को रोशन नहीं रख पाएंगे, आंदोलन गरीब और मेहनतकश वर्ग के सपोर्ट से लंबा चल सकता है, क्या ऐसा हो पाएगा।

1 टिप्पणी:

प्रवीण एलिया (नीरज) ने कहा…

भ्रष्‍टाचार है कहॉ पता नहीं यह खबर कौन उडा रहा है, कि भ्रष्‍टाचार फैल रहा है, भ्रष्‍टाचार नहीं यह तो अपने मिलने वालों को दिये गये उपहारों के कारण प्रतिफल दे रहे है, बाकी सुविधा शुल्‍क है, ड्रायविंग तो बहुत अच्‍छी आती है लेकिन लायसेंस हमें लाईन में लग कर नहीं बनबाना, उसके लिये सुविधा शुल्‍क तो देनी ही पडेगी।
अन्‍ना कितने ही रहे चौकान्‍ना कुछ नहीं होना इस देश का न तो मंत्री भ्रष्‍ट है और न ही अफसर भ्रष्‍ट है,भ्रष्‍ट तो इस देश की जनता है जब तक जनता नहीं सुधरेगी, देश का भला नहीं हो सकता।