बुधवार, 6 अप्रैल 2011

क्रिकेटरों के साथ जमीन से जुडि़ए

शीर्षक से चौंकिए मत, हालांकि मैं अपने उस अनुभव को बयान कर रहा हूं जिसकी शुरूआत चौंकने से ही हुई थी। हाल ही में मुझे एक पारिवारिक कार्यक्रम में उत्तरप्रदेश के उस इलाके में जाना पड़ा जिसे दिल्ली वालों की जुबान में एनसीआर कहते हैं, मतलब उत्तरप्रदेश के नोएडा और गाजियाबाद इलाके में दो दिन रहा। दिल्ली सूबे की सरहदों के इर्द गिर्द हरियाणा और उत्तरप्रदेश के इलाकों को दिल्ली की आबादी का दवाब झेलना पड़ रहा है। इन दोनों सूबों की सरकारों की कमाई के सबसे बड़े जरिए भी यही इलाके हैं। यहां के जमींदार भी करोड़ और अरबपति हो चुके हैं। खैर मैं तो क्रिकेटमय देश के सितारे क्रिकेटरों के नए रूप से परिचय होने के अनुभव को बताना चाहता हूं। न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डवलपमेंट अथारिटी उर्फ नोएडा से जैसे ही मैं गाजियाबाद के उस इलाके की ओर मुड़ा जिसे डवलप होने को आतुर कहते हैं, मेरा स्वागत बड़े बड़े होर्डिंगस, बैनरों और पोस्टरों से हुआ। हर पोस्टर, होर्डिंग पर आज और कल के सुपर क्रिकेट सितारों की तस्वीरें हैं, होर्डिगस का न तो क्रिकेट विश्वकप जीतने की खुशी से कोई मतलब है और न ही बाइक, शेविंग क्रीम, सीमेंट, कुकिंग आइल, इंजन ऑयल के विज्ञापनों से कोई नाता, जिनके हम लोग आदी हो चुके हैं। जो क्रिकेटर शून्य पर आउट होता है, उसके बाद उसी वक्त ब्रेक में उसके बल्ले की चमक के साथ किसी प्रोडक्ट का इंड्रोस्मेंट आ जाता है। गाजियाबाद के लिए जाने वाले मोड़ से 15 किलोमीटर का वह सिलसिला शुरू हो जाता है, जहां हजारों होर्डिंग लगे हैं। वहां वीरेंद्र सहवाग किसी स्टेट में फ्लैट की बुकिंग कराने की सलाह देते नजर आ रहे हैं तो कहीं महेंद्र सिंह धोनी, गौतम गंभीर तो कहीं कपिलदेव एक करोड़ रुपए के फ्लैट बुक कराने के फायदे बता रहे हैं। दर्जनों क्रिकेटर जमीन और मकान बुक कराने के लिए बिल्डर्स की ध्वजा उठाए दिखे। ट्रकों की आवाजाही, धूल का बवंडर और इसके बीच खेतों में आखिरी सांसें गिनती गेहूं की फसल और आसपास पंद्रह और 20 माले के फ्लैट्स की हाइराईस बिल्डिंगस का निर्माण जारी है। यह मायावती का उप्र है, विकास के नए प्रतिमान गढ़ता और खेती का मर्सिया पढ़ता विकास। रास्ते में एक नदी का पुल पड़ता है, नदी का अस्तित्व समाप्त प्राय है, हिंडेन नाम की यह नदी कभी कभी कल रही होगी, अब तो यह हिडन हो गई है। वापसी में शिप्रा भी दिखी, नदी नहीं एक टाउनशिप। शिप्रा नदी तो उज्जैन में ही बदहाल है। कपिलदेव पंचतत्व का विज्ञापन कर रहे हैं, ये पंचतत्त्व क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा अर्थात धरती, पानी, आग, आसमान और हवा अर्थात पर्यावरण की चिंता के नहीं बल्कि बिल्डिंग बेचने के लिए इन पांचों तत्वों की बर्बादी में सहभागिता है। यहां आकर लगता है कि आबादी के बढ़ते दबाव, अकूत धन कमाने की अकूत संभावनाओं, नेताओं और सरकारों की उसमें अपने स्वार्थों में सहभागिता के साथ ही हमारे राष्ट्रीय नायकों की भी मिलीभगत पर्यावरण और धरती को कितना खतरा पैदा कर रही है। खेती और पर्यावरण का क्या होगा, यह चिंता भी करना होगी। यह अकेले गाजियाबाद, नोएडा, गुडग़ांव का किस्सा नहीं हैं। बेंगलुरू हो कि मुंबई, चैन्ने हो कि भोपाल, अगरतला हो कि गुवाहाटी, सब तरफ खेती बिल्डिर्स और सरकार के निशाने पर है, पर्यावरण ताक पर रख दिया गया है। विज्ञापनों के जरिए धन बटोरने में आगे रहने वाले क्या हमारे हीरोज इस बारे में भी सोचेंगे। आमीन

3 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

युवराज की एक बात मुझे याद आती है "जब तक बल्ला चल रहा है तब तक मौज है "उसके बाद कोई पूछता भी नही है

ashishdeolia ने कहा…

पर्यावरण की चिंता से हमारे हीरोज को क्‍या मतलब। उनके तो ठाठ हैं। मगर मूलरूप से खुद एक किसान होने के नाते मुझे भी ये बहुत बुरा लगता है कि गेंहू के खेत में बहुमंजिला इमारतों की फसलें पक रही हैं। हमारे बच्‍चे आगे जाकर क्‍या करेंगे, कौन कहे। विकास के नाम पर उत्‍तरप्रदेश और हरियाणा की सोना उगलने वाली यमुना और गंगा के दोआब की बेशकीमती उपजाउ जमीन लगातार बलि चढ रही है मगर किसी के कानों पर जूं नहीं रेंगती। मैनें खुद ऐसे ही एक खेत में अपना घर लिया है इसलिये इस पाप में मैं भी शामिल हूं।
मां वसुंधरा, अन्‍नपूर्णा मुझे क्षमा करें।
अपराध शतमं क्रियंते क्षम्‍यतां परमेश्‍वरी ।

प्रवीण एलिया (नीरज) ने कहा…

चच्‍चा क्‍या कर रहे हो, बेचारों का कमा लेने दो, एक क्रिकेट ही तो जिसके खिलाड़ी चल रहे है, वह भी नहीं कमाये तो हॉकी और अन्‍य खेलों के खिलाडि़यों की तरह भूखे मरे, बर्ल्‍डकप में सचिन फाईनल में चला नहीं फिर भी बर्ल्‍डकप उसी का मान रहे है, और भारत रत्‍न जैसे सम्‍मान देने की बात कर रहे है। कम से कम विज्ञापन से कमा तो रहे है, सरकारे क्‍या कर रही है, जो खेती वाली जमीन पर प्‍लाट/फलैट आदि बनाने की अनुमति दे रही है।
वो तो सिर्फ विज्ञापन कर रहे है, सरकारे अनुमति क्‍यों दे रही है। खेती वाली जमीन पर कालोनी काटने पर संपत्ति जप्‍त या मौत की सजा का प्रावधान हो फिर आगे की बात हो।