शनिवार, 14 अगस्त 2010
इस आजादी से तो गुलामी भली....
तिरसठ बरस पहले देश के बंटवारे को स्वीकार कर हमें जो मिला था उसे हम भूलवश आजादी मान बैठे। अगर ऐसा नहीं है तो फिर कॉमनवेल्थ गेम्स का तमाशा हम क्यों आयोजित कर रहे हैं? उसमंे भी भ्रष्टाचार का कॉमन वेल्थ कर करोड रूपए डकारे जा रहे हैं और बेशर्मी की हद ये है कि सरकार इस मामले में कुछ कहती और करती नहीं दिख रही है। दिख रहा है तो इसे राजनीतिक फायदे में बदलने का भाजपा का प्रयास। हालांकि कॉमनवेल्थ के भ्रष्टाचार में वे लोग भी शामिल हैं जो भाजपा और उसके नेताआंे से जुडे हुए हैं और दिल्ली में इन गेम्स की तैयारियों में ठेकेदारी कर जेबें भर रहे हैं। संसद पर हमले के दोषी अफजल को फांसी देने में केंद्र सरकार की मक्कारी देश को आजाद कराने के लिए फांसी के फंदे पर खुशी खुशी झूल गए भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू की शहादत को नकारने जैसा ही है। लेकिन इस मुददे को भी वो भाजपा नेता बार बार कांग्रेस पर हमले के लिए उठाते हैं जिनके राज में केंद्रीय मंत्री की बेटी को छुडाने आतंकवादियों को सम्मान काबुल ले जाया गया था। कोई दूध का धुला नहीं है राजनीति कीचड हो चुकी है। जिन राज्योंमंे भाजपा की सरकारें हैं वहां भी जमीनों के घोटाले, रिश्वतखोरी चरम पर है। संघ से जुडे नेता और कार्यकर्ता भी कांग्रेसियों को मात देने के अभियान में निकल पडे लगते हैं। मध्यप्रदेश में दर्जनों नहीं सैकडों उदाहरण सामने आ चुके और लगातार आते ही जा रहे हैं। पत्रकारिता को चौथा खंबा कहा जाता है लेकिन विज्ञापन की शक्ल में खबरें छापकर जनता के भरोसे को तार तार किया जा रहा है। खबर अब वो है जो बिक सके। ऐसे पत्रकारों की संख्या में भी लगातार इजाफा हो रहा है जिनके यहां इंकम टैक्स का छापा पडता है, जिनके खिलाफ काले धंधों में काम करने के आरोप लगते हैं। जनता की आदिवासियों की हिमायत करने वालों को नक्सली बताकर एनकाउंटर कर दिया जाता है। भूमाफिया, पुलिस, भ्रष्ट नेता और अफसर जनता और उसकी संपत्ति को इस कदर लूट रहे हैं कि अंग्रेज भी शरमा जाएं, क्योंकि उन्होंने दूसरे मुल्कों को लूटा और हम अपने ही मुल्क और लोगों को लूटने में लगे हैं। एक तरफ महंगाई की मार है दूसरी तरफ भ्रष्टाचार किसान आत्महत्याएं करने को मजबूर हैं और सरकार अरबों रूपए फूंककर कॉमनवैल्थ गेम्स कराने पर आमादा है। गोदामों में अनाज रखने की जगह नहीं है, खुले में अनाज सड रहा है और दूसरी तरफ लोग भूख से मर रहे हैं। क्या खूब आजादी आई है और इन 63 सालों में हमने क्या खूब प्रगति की है। करीब इतने ही सालों में जापान आर्थिक ताकत बन गया और अब हमारे पडोसी चीन ने आर्थिक ताकत बनने में जापान की बराबरी करने के बाद उसे पछाडने का लक्ष्य हासिल कर लिया है और हम.. इस बात पर खुश हैं कि आखिर हमने अपनी मुद्रा का पहचान चिन्ह खोज लिया है। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कल लाल किले की प्राचीर से महंगाई के खात्मे की सरकारी कोशिशों का बखान करेंगे और देश को ताकत बनाने का अहद दोहराएंगे जो नेहरू, इंदिरा, नरसिंहराव से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक कहते आए और आगे भी मनमोहन या कोई और प्रधानमंत्री कहेंगे ही। लेकिन क्या कोई देश को वाकई ताकतवर बनाने, गरीबी, भुखमरी, बेईमान, भ्रष्टाचार रोकने के लिए कुछ करेगा। फिलहाल तो कोई उम्मीद की किरण दिखाई नहीं देती। मुझे लगता है कि मैं गुलामी के दौर में पैदा हुआ होता तो देश पर कुर्बान होकर मरने का लक्ष्य तो होता लेकिन अब अपने ही देश में जिसे हम आजाद कहते हैं गुलामी के से हालात में जीना पड रहा है। दोस्तो आओ कुछ सोचें विचारें, दीवारें गिराकर कोई नई राह निकालें, मिलकर सोचें और कर गुजरें कि हम वाकई आजाद हों, मुल्क आजाद हो और ताकतवर बने; जयहिंद।
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4 टिप्पणियां:
बहुत ही अच्छी प्रस्तुती ,हम आजाद है भूखे मरने के लिए
हम आजाद हैं एक निकम्मे प्रधानमंत्री के निकम्मेपन को सहने के लिए तथा उसे मोती तनख्वाह देने के लिए ...
हम आजाद हैं शरद पवार जैसे लोगों को पूरे देश के गरीबों की रोटी को लूटने देने के लिए और ऐसे लूटेरों को मंत्री पद पर बैठकर मोटी तनख्वाह देने के लिए ..
इतने बेशर्म तो अंग्रेज भी नहीं थे ...?
हमें अब सत्य बोलना होगा नहीं तो ये झूठी आजादी हमें कहीं का नहीं छोड़ेगी ...
अंग्रेजों ने भारत को बहुत जल्दबाजी में छोडा। सत्ता हस्तांतरण की तारीख जून 1948 थी मगर भागने की जल्दी में उन्होनें बंटवारे को रोकने और खूनखराबे को काबू करने की कोशिश भी नहीं की। नेहरू और जिन्ना को भी प्रधानमंत्री बनने की जल्दी थी सो गांधी बेचारे नेपथ्य में चले गये और भारत की राजनीति में वो अप्रासंगिक बन गये। अगर हमारे नेताओं ने ये हडबडी न दिखाई होती तो आज भारत एक होता और हमारी आधी समस्यायें पैदा ही न हुई होतीं।
बहरहाल आधे अधूरे भारत को आजादी के बाद भरपूर मुसीबतें मिली है। इस दूसरी गुलामी से लडने का भी वक्त आयेगा। इंतजार कीजिये, अभी हालात और खराब होंगें मगर उम्मीद है हमारे जीते जी ही तख्तापलट का दिन जरूर आयेगा। गुलामी के जुए को उखाड फेंकने का माद़दा हममें है बस दिक्कत ये है कि हम बरदाश्त बहुत करते हैं। कभी दो हजार साल बरदाश्त किया तो कभी दो सौ साल। और अभी तो सिर्फ तिरसठ साल ही हुए हैं।
आज तक की सब से गंदी ओर निकम्मी सरकार, से ओर उम्मीद भी कया कर सकते है, आज भी हम गुलाम ही है, आप के लेख से सहमत है जी
कब तक गुलाम गुलाम करते रहेगें। आजादी के तौर में समय किसे है जो आगे आकर बदलाब की कोशिक करें। कमिशन बेल्थ का गैम हर जगह है। यह गैम सब जगह चल रहा है। सर पर बांधे कफन बो आज कोई दिखता नहीं, जिन्दगी गुलामी की जी लेगें, लेकिन कुछ कर सकते नही।
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