मेरी २७ दिसम्बर की पोस्ट पर श्री आईबी रस्तोगी ने टिप्पणी भेजी है यहाँ ज्यों की त्यों प्रस्तुत है
विकास पुरुष नारायण दत्त तिवारी को महिलाओं के विकास में विशेष रुचि लेने का खामियाजा भुगतना पड़ा। संजय गांधी के दौर में लखनऊ-दिल्ली के बीच अपनी भाग-दौड़ की वजह से वे नयी दिल्ली तिवारी त• • के नाम से पुकारे गये। एक समारोह में तत्कालीन राज कुमार संजय गांधी की चरण पादुकाएं खोज लाने में भी वे काफी मशहूर हुए। वैसे तो अच्छों को बुरा साबित करना दुनिया की पुरानी आदत है। यह बात अभिनेता राज कुमार अपने खास अंदाज में फिल्म में कह गये हैं। अगर हम ठीक से देखें तो आचार्य वात्स्यायन और के देश में जहों कोकशास्त्र को एक ललित कला के तौर पर स्थापित किया गया और खजुराहो में चंदेल राजाओं ने मशहूर मंदिर बनवाये और जहां संभोग से समाधि का नारा देकर पश्चिमी जीवन की धारा पलट देने वाले आचार्य रजनीश ओशो ने अपने कम्यून स्थापित किये । उस देश में जब उम्र के चौथेपन में एक बुजुर्ग समाधि लगाने की प्रैक्टिस कर रहा हो तो उसे छिनरा कहना अपराध है। एन डी तिवारी से सभी को ईष्र्या है क्यों की उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड में हर गली में उन्हें डैडी कहने वाले दो-चार लोग मिल ही जाएंगे। तो उनसे ईष्र्या होनी स्वाभाविक ही है की जो काम आज के जवानजहान लडक़े बिना हकीम अर्जुन सिंह उप्पल या डाक्टर एडवर्ड की दवाओं के बिना चल नहीं सकते। वही काम 86 साल के इस बूढ़े जवान ने कर दिखाया। कांग्रेस तो तेलंगाना मुद्दे पर फंस चुकी थी। ऐसे में उसे पब्लिक ध्यान हटाने कोई शिगूफा चाहिए था। एन डी तिवारी की बलि तेलंगाना मुद्दे पर अपनी मिस हैंडलिंग के लिए कांग्रेस ने ली है। वो तो सिर्फ संभोग से समाधि में जाने का अभ्यास कर रहे थे। जो उन्हें इस उम्र में भी चाहिए था। सारा बवाल सिर्फ इस बात का है की हाय उन की जगह हम क्यों नहीं हुए और बकोल हरिशं कर परसाईं हमने और हमारे समाज ने सारी नैतिकता समेटकर टांगों के बीच में रख दी है। जहां तक सवाल पद का है तो अमरीकी राष्ट्रपति के नेडी और हीरोइन मार्लिन मुनरो के संबंध विश्वविख्यात हैं और हाल ही के बिल क्लिंटन-मोनि का लेवेंस्की की कहानियां सभी को याद ही होंगी। फिर और अपने ही यहां साउथ में एमजी रामचंद्रन और जय ललिता के संबंधों पर क्या कीसी ने अंगुली उठाई। दोनों ही मुख्यमंत्री बने। ऐसे में अब सुचिता की बात हास्यास्पद ही लगती है। खास तौर पर तब जब आप जवाहरलाल नेहरू और लेडी एडविना माउंटबैटन के रिश्तों पर आंखें बंद कर लेते हों। क्या किसी को याद है की हिंदुस्तान का बंटवारा जिन्ना की रुट्टी दिनशाव पेटिट से आशनाई और नेहरू-एडविना आशनाई के कमपटीशन में हुआ था। रुट्टी जिन्ना को भले ही 24 घंटे के लिए हो लेकिन प्रधानमंत्री देखना चाहती था और एडविना नेहरू को । लिहाजा दो मुलक बने। हम कुछ नहीं बोलेगा। चोप्प रहेगा।
-आईबी रस्तोगी एलियाजी का ब्लॉग पर टिप्पणी में
सोमवार, 28 दिसंबर 2009
रविवार, 27 दिसंबर 2009
इस हमाम में अकेले नहीं है एनडी

यह केवल एनडी तिवारी या किसी एक पार्टी या एक शहर या राजधानी का मामला नहीं है, दरअसल सत्ता का यही चरित्र है, भले वह राजनितिक , प्रशासनिक , पूंजी या किसी और तरह की सत्ता हो। इसमें अमूमन संघर्ष के बल पर हुआ उत्थान अंतत: धन, सुरा और सुंदरी गमन के रास्ते पतन की तरफ जाता है। लुब्बे लुआब ये कि इस हमाम में एनडी अकेले नहीं हैं।
बुधवार, 23 दिसंबर 2009
एक और मकबूल फ़िदा हुसैन
देवी और सरस्वती के अश्शील चित्र बनाने वाले हुसैन के नक्शे कदम पर चल पड़े अनाम से चित्रकार फैयाज ने मंगलवार को भोपाल के भारत भवन में एक चित्र प्रदर्शनी में हनुमानजी का अपमान करने चित्र लगा डाला। हिंदुओं ke वोटों से सत्ता में आने वाली भाजपा की मप्र में सरकार है और इस सरकारी कला भवन में हनुमानजी को पेंट शर्ट पहने और कला चश्मा लगाए भारत भवन को पर्वत की तरह उठाए हुए चित्रित किया गया है। खास बात ये है की हुसैन मप्र के इंदौर के हैं और फैयाज का चित्र मप्र की राजधानी में प्रदर्शित हुआ। इतना ही नहीं बात फैलते ही चित्र तो हटा लिया गया लेकिन मीडिया में इसकी खबर रुकवाने सरकार का जनसंपर्क विभाग जुट गया और सफल ही रहा। जन्संप्रक आयुक्त मनोज श्रीवास्तव भारत भवन के ट्रस्टी भी हैं, हालाँकि जबसे उन्हे संस्कृति सचिव पद से हटाया गया है, वे भारत भवन से खुद को दूर ही रख रहे हैं। ट्रस्टी पद से खुद हटाने के लिए उन्होंने शासन को दो महीने पहले लिखित में आवेदन भी दिया था, लेकिन सरकार ने उसे अब तक मंजूर नहीं किया है। मनोज हनुमानजी के अनन्य भक्त हैं और उनके चरित्र माहात्म्य पर किताब लिख चुके हैं। दुर्गा सरस्वती के अश्श्लिल चित्र बनाने वाले मकबूल फिदा हुसैन को कसाई बताकर हंगामा मचाती रही भाजपा के राज में हनुमानजी के फूहड़ चित्र सरकारी संस्थान में प्रदर्शित होने पर कोई सख्त कार्रवाई के बजाय मामले को दबाने से भाजपा की कथनी करनी अलग बताने वालों के आरोप में और दम पैदा हो जाता है। देखना ये है की हनुमानजी के नाम पर चल रहे संगठन बजरंग दल क लोग इस मामले पर क्या करते हैं। हो सकता है वे कुच्छ न करें और वेलेंटाइन डे पर प्रेमियों को पीटने क अपने सालाना आयोजन की तैयारी में व्यस्त हों। बहरहाल मारूतिनंदन हनुमान जी महाराज फैयाज को निश्चित ही क्षमा कर देंगे क्योंकि वे जानते हैं की फैयाज नासमझ है, तभी तो उसने ऐसा किया । लेकिन भाजपा और उसकी सरकार का की होगा. अगर बजरंग बली नाराज हुए तो फैयाज को और भाजपा को भला कौन बचा सकता है, सिवाय हनुमान जी के। जय बजरंगवली की
बुधवार, 16 दिसंबर 2009
सर हरिसिंह गौर के नगर का पार्टियों और नेताओं के गाल पर झन्नाटेदार झापड


गुरुवार, 3 दिसंबर 2009
फिर घर में कभी रामायण का पाठ नहीं हुआ
हमारे घर में परंपरा थी कि बड़े भैया के जन्मदिन (1 दिसंबर) को अखंड रामायण का पाठ होता था। 1984 में भी एक दिसंबर को रामायण शुरू हुई और 2 दिसंबर की रात को समापन के बाद पूरा परिवार गहरी नींद में सोया था। सुबह-सुबह कुछ पड़ोसियों ने तेज दरवाजा खटखटा कर उठाया कि गैस रिस रही है। कोई कह रहा था कि घर का गैस सिलेंडर बंद कर लो। कमरे की खिड़की खोल कर देखा तो मेन रोड पर दौैड़ते लोग नजर आए। फिर हम छत पर पहुंच गए, तो देखा एमएसीटी की पहाड़ी पर लोगों का हुजूम लगा हुआ है। इतनी देर में माजरा समझ में आया कि बंटी के पापा की फैक्टरी से कोई जहरीली गैस निकली है, जिससे पुराने शहर में काफी लोग मर गए हैं। इस गैस से बचने के लिए ही लोग नए शहर की तरफ बदहवास दौड़ते चले आ रहे हैं। (बंटी, मेरा हम उम्र था और उसके पापा ने कुछ साल इस मौत की फेक्टरी में नौकरी की थी। जब यह हादसा हुआ, तब तक वे यहां की नौकरी छोड़ चुके थे। उनके बारे में मुझे बस इतना याद है कि वे एक काला ब्रीफकेस लेकर उस जमाने में ऑटो से ऑफिस तक जाते थे।) मेरे बड़े भैया और मोहल्ले के दूसरे लोग पीडि़तों की सहायता के लिए पहुंच गए। कई दिन तक शिविर में रहने वाले लोगों के लिए हमारे व पड़ोसियों के घर से रोटियां गईं। ओढऩे- बिछाने और पहनने के कपड़े भी हम लोगों ने शिविरों में पहुंचाए। हम, नए शहर में रहते थे और हमारा वार्ड गैस पीडि़त नहीं माना गया। इसका मुझे गम नहीं, लेकिन उसके बाद घर में कभी रामायण का पाठ नहीं हुआ। जब भी रामायण की बात आती है, गैस त्रासदी का खौफनाक मंजर और उस दौरान भोगा गया मानसिक संताप पूरे परिवार जेहन में और जुबान पर आ जाता है। फिर हिम्मत ही नहीं होती कि रामायण पाठ का आयोजन करें। 1984 में पहले आरक्षण आंदोलन, फिर इंदिरा गांधी की हत्या और सिक्ख विरोधी दंगे और उसके बाद गैस त्रासदी। इस सबके कारण जनरल प्रमोशन तो मिल गया, लेकिन आज भी लगता है कि उस साल हुए नुकसान की भरपाई आज तक नहीं हो पाई।- मनोज जोशी, भोपाल
बुधवार, 2 दिसंबर 2009
उम्र से लंबा हादसा, दुनिया ने नहीं लिया भोपाल से सबक

करोड़ों की लागत से बनीं भव्य इमारतें जिन्हें अस्पताल नाम दिया गया है, में करोड़ों रुपए खर्च कर विदेशों से लाई गई मशीनें धूल खा रही हैं। अगर इन अस्पतालों में सब कुछ ठीक से चलने लगे तो भोपाल देश का सर्वाधिक स्वास्थ्य सुविधा संपन्न शहर हो सकता है। लेकिन दो दशक में ऐसा होने के बजाय हालात और बदतर हो गए हैं। दवाएं खरीदने के नाम पर घोटालों के बीच अपने सीने में घातक गैस का असर लिए गैस पीडि़त आज भी तिल तिलकर मर रहे हैं। दवाओं का टोटा न अस्पतालों में नजर आता है और न ही आंकड़ों में। लेकिन लोग दवाओं के लिए भटकते रहते हैं।
विश्व की सबसे भीषणतम औद्योगिक त्रासदी का तमगा हासिल कर चुके इस भोपाल हादसे के मुजरिमों को न केवल तत्कालीन सरकारों ने भाग जाने दिया बल्कि बाद की सरकारों ने नाकाफी हर्जाना लेकर समझौता करने से लेकर आपराधिक मामले में धाराएं कमजोर करने जैसे अक्षम्य अपराध कर कानूनी पक्ष को कमजोर किया। इससे प्राकृतिक न्याय की मूल भावना कमजोर हुई। आर्थिक हर्जाना कभी मौत के मामले में न्याय नहीं हो सकता, फिर यह तो सामूहिक नरसंहार का मामला है। उच्चतम न्यायालय ने 13 सितंबर 1996 के फैसले में यूनियन कारबाइड से जुड़े अभियुक्तों के खिलाफ आईपीसी की दफा 304 के स्थान पर 304- ए के तहत मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। इसके तहत यूका के खिलाफ फैसला होने पर अभियुक्तों को दो वर्ष कैद और पांच हजार रुपए जुर्माने की सजा होगी। इस मामले में यूनियन कारबाइड के तत्कालीन अध्यक्ष वारेन एंडरसन, यूका ईस्टर्न हांगकांग तथा यूका इंडिया लिमिटेड के तत्कालीन अध्यक्ष केशव महिंद्रा समेत 10 अन्य अभियुक्त बनाए गए थे। एंडरसन प्रमुख अभियुक्त होने के बावजूद भारत में अदालत के सामने पेश नहीं हुआ।
भोपाल हादसे से किसी भी तरह का सबक नहीं लिया गया है। आज भी भोपाल में और देश भर में घनी आबादियों के बीच घातक कारखाने धड़ल्ले से चल रहे हैं। हर कहीं हर कभी छोटे छोटे भोपाल घट रहे हैं। ढाई दशक बाद न भोपाल ने न मप्र ने न भारत ने और न ही दुनिया ने भोपाल से कोई सबक लिया है।
क्रमश.. .. जारी
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