मंगलवार, 18 अगस्त 2009

अमेरिका में कोई आपको जानता है, पूछना खराब लगा शाहरूख को

फिल्म एक्टर शाहरूख खान को अमेरिकी हवाई अडडे पर डेढ घंटे तक रोके रखा जाना बिल्कुल बुरा नहीं लगा, उन्हें बुरा लगा तो सिर्फ ये कि उनसे यह पूछा गया कि क्या अमेरिका में कोई है जो उनकी शिनाख्त कर सके। शाहरूख ने अमेरिका से लौटने के बाद डेढ घंटे चली प्रेस कान्फरेंस में तीन दिन से से इसी खबर को मचाए हुए और बार बार एक ही तरह के सवाल कर रहे पत्रकारों को बार बार बताया कि अमेरिका ने मुझे बुलाया नहीं था, मुझे काम था इसलिए गया, जब भी काम होगा फिर जाउंगा, कोशिश होगी कम जाउं, यह भी कहा कि पूरे दुनिया में जाति धर्म और रंग के आधार पर भेदभाव होता है यहां तक कि हमारे देश में भी होता है, यह कोई मुददा नहीं है क्योंकि हमने दुनिया ऐसी ही बना ली है तो ऐसी ही दुनिया में रहना होगा। यह भी कहा कि कलाम साहब के साथ जो भी हुआ वह बडा मामला है, न मैं बडा हूं और न ही मेरे साथ जो वह बडा है। उन्होंने बार बार दावा किया कि वे घटिया कमेंट नहीं करते, न करना चाहते हैं और पूरे वाकये को भुलाकर भविष्य की ओर देखते हैं। लेकिन मीडिया के घुमा फिराकर दोहराए गए सवालों से विचलित न होने का अभिनय करने के बावजूद वे विचलित भी हुए और ऐसी टिप्पणियां भी कीं जिसके लिए वे कुख्यात हो चुके हैं। मसलन उन्होंने मुलायम सिंह यादव और अमर सिंह की टिप्पणियों के बारे में जवाब देते वक्त घटिया, शोहदे और टुच्चे जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। उन्होंने यह भी कहा कि वे सिली ब्लाॅग्स की भी परवाह नहीं करते। वे खुद को बेहद सामान्य आदमी बता जरूर रहे थे, लेकिन उन्हें अमेरिका में चुभी यही बात की उनसे यह पूछा गया कि कोई अमेरिका में उनकी शिनाख्त कर सकता है क्या? असल में शाहरूख को अमेरिका में अपमान झेलना पडा और उसकी उन्होंने ना ना करते हुए अभिव्यक्ति भी की। लेकिन वे फिर अमेरिका जाएंगे, यह उनकी और उन जैसे कलाकार, नेता, व्यवसायी, एनआरआई बनने के ख्वाहिशमंदों की मजबूरी है। वे भरपूर धन कमाना चाहते हैं, धन के आगे अपमान भला क्या चीज है? शाहरूख खान की जो फिल्में धनवर्षा करने वाली साबित हुई हैं, वे अमेरिका में चलने के कारण ही कमाउ साबित हुई हैं। असल में करण जौहर टाइप सिनेमा भारत में चलेगा यह ध्यान में रखकर नहीं बल्कि ओवरसीज अर्थात अमेरिका में कितना चलेगा, यह सोचकर बनाया जाता है। भारत को भुलाकर अमेरिका की राह पकडने में अपमानित होना पड रहा है, जैसे आस्ट्रेलिया और अन्य मुल्कों में भारतीय मूल के लोगों की पिटाई हो रही, यह उसका बदला हुआ रूप ही है। अपने देश को जुबान से महान कहते जरूर हैं लेकिन मानते महान उन मुल्कों को हैं जिनकी मुद्रा भारतीय मुद्रा से कई गुना कीमती है। कहावत है कि जिसकी लाठी उसकी भैंस, असल में जिसकी मुद्रा ताकतवर भैंस उसी की है। अमेरिका हो, आस्ट्रेलिया हो, इंग्लैंड हो, या कोई और ताकतवर और संपन्न मुल्क, वहां आपके साथ ऐसा ही व्यवहार होगा। भले आप आम भारतीय हों या फिर फिल्म एक्टर। आप वहां दोयम दर्जे के आदमी हैं, वहां रहने लगे हैं तो दोयम दर्जे के नागरिक हैं। वहां जाने, बसने या वहां से लौटने पर यहां के लोगों पर भले रौब गांठिए लेकिन सच्चाई ये है कि आप दोयम दर्जे का व्यवहार पाते हैं। मीडिया शाहरूख के मामले जो चिल्ल पों मचाई, उनके लिए वह उस दिन की नौकरी थी। कोई और मसला आ जाता तो शाहरूख की खबर दब jati .

2 टिप्‍पणियां:

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

सब अपनी-अपनी रोटियां सेकने में लगे है, दोष मूर्ख जनता का है जो बेफाल्तू कुछ को सर आँखों पर बिठा देती है

प्रवीण एलिया ने कहा…

Shahrukh to King ke aaham ka sawal hai Bura to lagega hi