रविवार, 9 अगस्त 2009
मुझको यारो माफ करना मैंने दाल खाई ......
मित्रों आज बरोज रविवार मैंने दोपहर तीन बजे अरहर की दाल खाई। पूरे मुल्क से डा. मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी, राहुल बाला से लेकर मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, वित्त मंत्री राघवजी से लेकर उन तमाम लोगों से क्षमायाचाना करते हुए यह कन्फेस करता हूं कि 90 रुपए किलो होने के बावजूद मैंने दाल खाई है। औकात नहीं होने के बावजूद दाल खाना मेरे तई जुर्म की श्रेणी में आता है। यकीन मानिए दाल खाने के बाद पेट इस कदर भर गया है कि लगता है कई दिन खाना न भी मिले तो चल सकता है। दरअसल मुझे अपने एक निकट रिश्तेदार ने दोपहर करीब एक बजे अचानक फोन किया कि दाल बाफले बन रहे हैं, आप सादर आमंत्रित हैं। तो जनाब मुझे दाल मयस्सर हो गई। मैंने मेजबान के घर पहुंचते ही कहा - धन्य हैं आप जो मुझे दाल खाने के लिए आमंत्रित किया। मेरे तईं आप रईसों की श्रेणी में आ गए हैं। वो जमाने लद चुके हैं जब कहा जाता था दाल रोटी खाओ प्रभु के गुण गाओ। अब तो दाल लग्जरी आयटम है। जैसे एनडीए के जमाने में एक दफा प्याज लग्जरी हो गई थी। वैसे मनमोहनजी के दूसरे कार्यकाल में दाल हो गई है। इन दिनों रिश्ते के लिए आने वालों को खास तौर पर दाल और उससे बने व्यंजन परोसना रईसी की बात हो गई है। इसमें भी जितनी गाढी दाल उतने ज्यादा रईस। हमारे एक ईमानदार पत्रकार मित्र ने बताया कि उनके यहां दाल बनी है तो मैंने उन्हें शक की निगाह से देखा, वे बोले यह तो पुराने रेट की बची हुई दाल थी। उसमें भी पत्नी ने कहा कि एक भी दाना छोड़ा तो तुम जानना, आगे से दाल बनेगी ही नहीं। घरों में चर्चा का विषय है तो दाल। अब तो मुहावरे भी कुछ इस तरह बनने चाहिए , मैं दाल हराम नहीं हूं, सरदार मैंने आपकी दाल खाई है। फिल्मों के नाम भी कुछ इस तरह हो सकते हैं- दाल का कर्ज, दाल हलाल, दाल हराम, दाल की जंग, दाल वाला और दालवाली। मप्र की सरकार दाल पर लायसेंस प्रणाली लागू करने पर प्रारंभिक तौर पर विचार कर रही है। इसका व्व्यापारी वर्ग ने विरोध जताया है। वैसे शक्कर पर कंट्रोल लागू करने से उसके दाम भी नहीं गिरे तो दाल के भला कैसे गिर सकते हैं। तो मित्रों मुझे माफ करना, मैंने दाल खाई है।
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4 टिप्पणियां:
इतनी महँगाई में दाल खाने के बाद कम से कम आपको गिल्टी फ़ील हो रहा है वही बहुत है पर इन नेताओं को कब ये फ़ील होगा कि आम आदमी आज दाल खाकर गिल्टी फ़ील करता है ।
आप आम इनसान हैँ...इसलिए आपको दाल हज़म नहीं हो रही है...
बढिया व्यंग्य
ध्यान से देखा था आपने वह अरहर की दाल ही थी न. अरे आजकल आभासी दाल का भी चलन है. वह दिन दूर नही जब दाल का उत्पादन फैक्टरी मे होने लगेगा. फिर कोई कमी नही रहेगी.
वाह दाल का क्या फील है
मजा आ गया
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