सोमवार, 24 नवंबर 2025

*बासौदा से वासुदेव नगर:नाम से बदलेगा क्या?_*

 बचपन में प्राथमिक विद्यालय की हिन्दी पाठ्यपुस्तक में एक बोध कथा थी" नाम बड़ा या काम" । जिसका निचोड़ था कि नाम में क्या है, काम प्रभावी लोक हितकारी होना चाहिए। यह कहानी बालमन में ऐसी पैठती है कि जीवन भर नहीं भूलती। नाम राम, कृष्ण,  महावीर,  गणेश,  महादेव आदि जिनके होते हैं या फिर शेर सिंह क्या वे वैसै होते हैं? खैर हमारे शहर बासौदा का नाम "वासुदेव नगर" रखने का ऐलान हुआ है तो जिस नगर में मेरी मातामही ( नानी) , माता और मेरा खुद का जन्म हुआ जहाँ तब तक उपलब्ध उच्चतम शिक्षा बीएससी मैनै पाई, जो मेरे लिए दुनिया की सबसे प्रिय नगरी है बासौदा। बासौदा के साथ पास का गांव "गंज" भी जुड़ा है गंजबासौदा। वो इसलिए कि एक गाँव है जिसका नाम है " दाऊद बासौदा"। एक और जगह है जिसका नाम है  हैदरगढ लेकिन एक जमाने तक "छोटा बासौदा" कहलाता था, जिसके पास मोहम्मदगढ है, जिस बोलचाल में मम्मदगढ कहा जाता है, जिसके मिडिल स्कूल में मेरे पिताजी शिक्षक रहे ( 1974-76) में दूसरी कक्षा मोहम्मदगढ स्कूल में ही पढ़ा।                                      अब बात बासौदा ( हम बासौदा वाले बासदा कहते हैं,  लिखते गंजबासौदा हैं और विधानसभा क्षेत्र है बासौदा) की। तो जनाब ये नाम बदलने की बात सबसे पहले 1977 हलधर किसान चुनाव चिन्ह पर जनता पार्टी के विधायक बने एडवोकेट जमना प्रसाद चौरसिया जी ( अब दिवंगत) ने उठाई थी। अब रविवार को मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव के मुख से पूर्ति का ऐलान क्षेत्रीय सांसद अत्यंत लोकप्रिय नेता सर्वाधिक समय मप्र के मुख्यमंत्री रहे वर्तमान केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराजसिंह चौहान की मौजूदगी में हुआ। बासौदा का नाम प्रयागराज को इलाहाबाद से फिर प्रयागराज करने जैसा नहीं है, न ही जगदीशपुर से इस्लाम नगर बनाने और भैरून्दा से औबेदुल्लागंज बनाने की क्रूरता को दुरुस्त करने जैसा है। इस्लाम नगर फिर जगदीशपुर बनना स्तुत्य और गौरवपूर्ण है लेकिन हलाली नदी, हलाली डैम अब भी कायम हैं,  जैसै हबीबगंज रेलवे स्टेशन रानी कमलापति बन गया लेकिन कोई माई का लाल थाना हबीबगंज का नाम नहीं बदल रहा, जबकि हबीबगंज नामक कोई जगो भोपाल में हैई नई भाई। बासौदा का लिखित भू अभिलेख एक शिलालेख में मिलता है करीब साढ़े चार सौ साल पहले। यह शिलालेख हमारे बासौदा के गनगौर वाला बाग ( अब यह नाम भी कोई याद नहीं रखता, लोग जमीन खाने लगे, नाम भी हजम करने लगे) की प्राचीन बावड़ी की शुरुआती सीढियों की दीवार पर लगा है। इसमें लिखा है- *मौजा-  बासौदा, परगना- उदयपुर) संवत 1632 या आसपास का है, इस वक्त पक्की तारीख स्मरण में नही हैं।*  खैर मौजा बासौदा अपनी मौज में ही रहा, तहसील बना, नगरपालिका बनी, आसपास और दूर दूर तक के आसपास के जिलों के ग्राम्य अंचलों के लिए बाजार और व्यापार का पसंदीदा शहर, जहाँ से सौदा लेना अति उत्तम इसलिए  " बासौदा"। ए श्रेणी की मंडी और पत्थर के कारोबार तथा बाकी व्यापार और मेहनती किसानों के श्रम से चमका और यहाँ की प्रतिभाओं ने शहर, प्रदेश,  देश , विदेश में शहर का नाम स्थापित किया।  यहाँ की जन आकांक्षा बासौदा को वासुदेव नगर या कुछ और नाम देने की कभी नहीं रही। जन आकांक्षा है सब योग्यताएं,  अहर्ता पूरी करने वाले बासौदा को जिला बनाया जाए। आगर- मालवा,  अनूपपुर,  डिण्डोरी,  अशोकनगर,  बुरहानपुर,  हरदा,  बड़वानी, नीमच, श्योपुर, उमरिया, निवाडी,...लगातार नये जिला बनते गए तो बासौदा किस पैमाने पर कम है? कब तक न्याय न होगा? नाम बदलने से क्या बदल जाएगा?                                                        सवाल अब यह है कि नाम बदलने से युवाओं पर नशे की गिरफ्त कम होगी? उद्योग लग जाएंगे? जमीनों पर अतिक्रमण कम होंगे? अपराध कम हो जाएँगे? छुद्र राजनीति और भ्रष्टाचार से मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर होकर  विकास और शहर हित में एकजुटते हो जाएगी?        *- सतीश एलिया ( वरिष्ठ पत्रकार)*

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