गुरुवार, 7 मार्च 2019

शौर्य को चुनावी खिलाफत का मुद्दा मत बनाइए

                                                       - सतीश एलिया

लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान भले न हुआ हो लेकिन राजनीतिक दलों ने अपने चुनाव अभियानों का न केवल आगाज कर दिया है बल्कि इसके लपेटे में देश की सुरक्षा और सैन्य बलों को भी ले लिया है। जो चुनाव राफेल को लेकर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के सत्ताधारी दल भाजपा और सरकार पर आरोपों और इसके प्रतिउत्तर में कांग्रेस सरकारों के वक्त में हुए घोटालों के वृतांतों के जिक्र के रूप में हो रहा था, वह पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर पाक पोषित जैश ए मोहम्मद के फिदायीन के आत्मघाती हमले के जघन्य अपराध के बाद बदल गया है। यह कह सकते हैं कि पुलवामा आतंकी हमले में 40 जवानों के शहीद होने के पहले का
िसयासी परिदृश्य इस हमले के बाद 360 डिग्री घूम गया है। अब महागठबंधन की रैलियां नदारद सी हैं और दूसरी तरफ पुलवामा का जैश और पािकस्तान को मुंहतोड़ जबाव जैश के अड्डे बालाकोट पर हमारी एयरफोर्स की एयर स्ट्राइक और उसमें पाकिस्तानी गिरफ्त में आए विंग कमांडर अभिनंदन वर्तमान की वापसी के जश्न ने भाजपा को भारी जोश से भर दिया है। भाजपा देश के सेना के प्रति जोश को अपने प्रति जोश में तब्दील कर फिर सत्ता आरोहण का मार्ग प्रशस्त देख रही है। दूसरी तरफ पुलवामा के बाद सर्वदलीय बैठक में सरकार और सेना का पूरी तरह समर्थन करती रही कांग्रेस एयर स्ट्राइक के देश पर असर और इसका भाजपा को िसयासी लाभ मिलने की आशंका से ग्रस्त होकर अब एयर स्ट्राइक पर सवाल उठा रही है। ये सवाल प्रकारांतर से वैसे ही सवाल हैं जो पािकस्तानी फौज, सरकार और वहां के पत्रकार एकतरफा नजरिए से उठा रहे हैं। भाजपा और उसके सहयोगी दलों को इस लिहाज से कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों तथा महागठबंधन की तीसरी ताकत बनने की जुगत में लगे दलों पर बढ़त लेने का मौका मिल गया है। सोशल मीडिया पर राष्ट्रवाद बनाम राष्ट्र िवरोधी संग्राम ने तटस्थ होकर तार्किक बातचीत का रास्ता एक तरफ से बंद सा कर दिया है। सरकार से सवाल पूछने में विपक्षी दल संयम से काम नहीं ले पा रहे हैं और नतीजे में वे चूक भी कर रहे हैं, सत्ताधारी दल चूंकि एडवांटेज की स्थिति में है और वे िवपक्षी नेताओं के फाउल पर फिर बैकहैंड स्ट्रोक से उन्हें चुनावी मैदान की आउटर लाइन पर धकेल धकेल दे रहा है। आलम ये है कि पांच साल पहले विकास के नारे पर आई नरेंद्र मोदी सरकार अपने अपने विकास के कारनामे गिना तो रही है लेकिन यह सब बताते वक्त उन उपलब्धियों पर िवपक्षी दलों को आफ्टर पुलवामा बयानों के कारण लानत भेजना िवकास के ऊपर जा रहा है। एक बार फिर भारतीय लोकतंत्र का चुनाव विकास और वास्तविक मुद्दों के बजाय एक तात्कालिक मुद्दे पर केंदि्रत होता दिख रहा है।
यह सही है कि कश्मीर समस्या आजादी के वक्त जो नेतृत्व था, उसकी दूरदर्शिता में हुई गफलत और एक हद तक अंग्रेजों की बनाई सिचुएशन के मुताबिक चलने की नीति का नतीजा है। तीन घोषित और दो अघोषित युद्ध होने के बावजूद न तो भारत और न ही पाकिस्तान और न ही कश्मीर घाटी की सियासत और न ही विश्व समुदाय की कश्मीर को लेकर िस्थति में कोई बदलाव आया है। करीब साढ़े तीन दशक से सर उठाए पाक पोषित आतंकवाद फिर उफान पर है और पुलवामा के बाद एयर स्ट्राइक के जरिए जबाव दिए जानेके बावजूद इसमें कोई कमी नहीं आई है। कश्मीर घ्ााटी के दल नेशनल कांफ्रेंस और भाजपा से गलबहियां कर सरकार भी चला चुकी पीडीपी भी हुर्रियत की ही तरह पाकिस्तान को भाने वाला तराना गा रहे हैं। धारा 370 को हटाने के नारों से देश में ताकतवर बनी भाजपा पूर्ण बहुमत की पांच साल की सरकार में भी इस धारा या कश्मीर को दिए गए अन्य विशेषाधिकारों को हटाने के बारे में संविधान की स्थिति को बदलने के बारे में कोई बात नहीं कर सकी। दूसरी तरफ कश्मीरी दल लगभग धमकी की मुद्रा में हैं।
पाकिस्तान में जैश के आतंकवाद ट्रेनिंग सेंटर पर भारतीय वायुसेना की स्ट्राइक में कितने मरे या नहीं मरे इस मुद्दे को लेकर भारत में सेना कोई दावा नहीं कर रही है लेकिन सत्ताधारी दल भाजपा के लोग 300 और 250 आतंकी मारे गए , ऐसे दावे कर चुनावी दंगल में एकतरफा विजेता होने के भाव से अभी से भर गए हैं। दूसरी तरफ पािकस्तानी मीडिया एक ही कौआ मरा और 15 पेड़ गिरे जैसी हास्यापद सूचनाएं प्रसारित कर रहे हैं, पाकिस्तान के क्लाइमेट मिनिस्टर तो संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय वायु सेना द्वारा 15 पेड़ गिराए जाने की िशकायत करने की तैयारी कर रहे हैं। जािहर है पाकिस्तान अपने यहां आतंकी ट्रेनिंग के अड्डे होने की बात क्यों कुबूल करेगा? जाहिर यह भी है कि आतंक की जड़ पर चोट तो हुई है, तभी तो आका भारतीय सीमा में हमले की कोशिश करने आया और जबावी हमले में मुंह की खाई। जैश के लीडर मौलाना मसूद अजहर के संगठन को आतंकी मानने और उसके सिपहसालारों की गिरफ्तारी यह बताती है कि पाकिस्तान भारत के दुनिया भर में बढ़े रसूख से मात खा रहा है। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की इस्लामिक देशों के संगठन ओआईसी में बतौर मुख्य अतिथि मौजूदगी को न रुकवा सके पािकस्तान ने इस आयोजन का बहिष्कार कर दिया। इससे पहले 1969 में भारत के मंत्री फखरुद्दीन अली जो बाद में राष्ट्रपति भ्ाी बने, को ओआईसी की बैठक में आने से मना कर दिया गा था, उन्हें रास्ते से ही लौटना पड़ा था, तब पाकिस्तान की चल गई थी लेकिन अब भारत का वक्त है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विदेश यात्राओं पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस समेत सोश्यल मीडिया पर आलोचना और परिहास अब तिरोहित हो गए हैं, अब आम जनता ही कहने लगी है देखा मोदी ऐसे ही विदेशी दौरे नहीं करते थे, पािकस्तान को अलग थलग कर दिया।
चुनावी दहलीज पर खड़ी भारत की सियासत में कांग्रेस नेताओं के बयानों का भी सत्ताधारी दल भाजपा को ही फायदा दिख रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का पुलवामा को दुर्घटना बताने पर प्रधानमंत्री मोदी से लेकर भाजपा के आम कार्यकर्ता तक ने मुद्दा बना लिया है।
जल्द ही चुनाव की तारीखों का ऐलान हो जाएगा, ऐसे मेंं विपक्षी दलों को चाहिए कि वे आतंक पर हमले, एयर स्ट्राइक और फौज के शौर्य से जुड़े किसी मामले पर सवाल न उठाएं बल्कि मोदी सरकार के पांच साल के काम में नुक्स निकालकर उसे मुद्दा बनाएं और अगर एकजुट होकर वाकई कोई महागठबंधन बना सकें तो ही मोदी से मुकाबला किया जा सकता है। यह तो तय है कि 2019 का आम चुनाव विकास से ज्यादा जोश पर लड़ा जाएगा। देखना यह है कि आने वाले दिनों में सरकार कोई चूक करती है या नहीं और विपक्ष एकजुट हो पाता है या नहीं। लेकिन दलों को एक बात तो ध्यान में रखना ही चाहिए कि सेना के शौर्य और देश की सुरक्षा के मामले में सवाल न उठाएं बल्कि एकजुट ही बने रहे हैं, यही श्रेयस्कर है, लेकिन लगता नहीं है कि ऐसा हो पाएगा। 

कोई टिप्पणी नहीं: