- सतीश एलिया
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लोकप्रिय नेतृत्व में चार नगर निगमों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की तूफानी जीत ने एक बार फिर उन्हें अपराजेय नेता की तरह स्थापित कर दिया है। निकाय चुनाव में शिवराज के गली गली घूमने पर तंज कस रही कांग्रेस की बोलती इन नतीजों ने बंद कर दी है। इंदौर, भोपाल और जबलपुर में भाजपा के महापौर प्रत्याशियों की जीत के विशाल अंतर ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस की रूचि अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने तक में नहीं है। भोपाल में एक दफा लोकसभा और बीते साल अपने गृह क्षेत्र भोजपुर में विधानसभा चुनाव हारे सुरेश पचौरी के प्रिय पात्र कैलाश मिश्रा की शिवराज के प्रिय मित्र आलोक शर्मा के हाथों 86 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त और इंदौर में दस साल के मुख्यमंत्री कार्यकाल से कांग्रेस की बदहाली की इबारत लिख चुके दिग्विजय सिंह की समर्थक अर्चना जायसवाल की भाजपा विधायक मालिनी गौेड़ से करीब ढाई लाख वोटों से हार ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस भाजपा से तो लगातार हार ही रही है, उसके अपने खंड खंड बंटे गुटों की भी इसमें बड़ी भूमिका है। ऐसा नहीं है कि भोपाल, इंदौर और जबलपुर में बीते पांच साल से भाजपा के मेयर होने की वजह से जनता की समस्याओं का अंत हो चुका था और वहां एंटी इंकंवेंसी फैक्टर भाजपा के खिलाफ हथियार नहीं बन सकता था। कांग्रेस के आधा दर्जन क्षत्रपों ने पार्टी के प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं को अनुशासनवद्ध और संगठन आधारित भाजपा से पिटने के लिए छोड़ दिया है। यही कांग्रेस कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता पंचायत चुनाव में भाजपा में भारी पड़ रहे हैं, क्योंकि बकौल दिग्विजय सिंह पंचायत चुनाव में टिकट नहीं बंटते। चार नगर निगमों के चुनाव नतीजे भाजपा की संगठनात्मक कुशलता की वजह से तो हैं ही वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता और प्रदेश के विकास पर एक बार फिर मुहर लगने का सबब भी हैं। इतना ही नहीं इस पूरे चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बरकरार रहने की तस्दीक भी हुई है, क्योंकि भाजपा ने जनता को बताया कि केंद्र में मोदी सरकार, प्रदेश में भाजपा सरकार और अब आपके नगर में भी भाजपा सरकार आपकी समस्याओं को खत्म कर देगी। विकास की नई इबारत लिखी जाएगी और मप्र के शहर अब र्स्माट सिटी बन सकेंगे। भाजपा के संगठन और सरकार पर यह महती जिम्मेदारी है कि वे इन वादों को नारों से जमीन पर उतार कर दिखाएं और कांग्रेस के लिए यह सबक है कि अब भी नहीं चेते तो भाजपा के मिशन कांग्रेस मप्र और कांग्रेस रहित भारत को कांग्रेस के नेता ही सफल कर देंगे। जनता ने अपना मेंडेंट और संदेश दे दिया है कि उसे लफ्फाजी नहीं विकास चाहिए, अब बारी केंद्र, राज्य और नगर सरकारों की है कि वे प्रदेश के महानगरों को अच्छा ट्रैफिक सिस्टम, पार्किंग सुविधा, पानी, सड़क और तरतीब से बसी कॉलानियां दें। गलत करने वालों को सजा दें और विकास में सहभागी बनने वाले सभी वर्गों को सुविधाएं हैं। उम्मीद की जाना चाहिए कि जीत के संदेश को सत्ताधारी दल भाजपा सही अर्थ में लेगी और हार के तल्ख संदेश को ग्रहण कर कांग्रेस भी विपक्ष की भूमिका में शिद्दत से उतरेगी।
मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लोकप्रिय नेतृत्व में चार नगर निगमों के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की तूफानी जीत ने एक बार फिर उन्हें अपराजेय नेता की तरह स्थापित कर दिया है। निकाय चुनाव में शिवराज के गली गली घूमने पर तंज कस रही कांग्रेस की बोलती इन नतीजों ने बंद कर दी है। इंदौर, भोपाल और जबलपुर में भाजपा के महापौर प्रत्याशियों की जीत के विशाल अंतर ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस की रूचि अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ने तक में नहीं है। भोपाल में एक दफा लोकसभा और बीते साल अपने गृह क्षेत्र भोजपुर में विधानसभा चुनाव हारे सुरेश पचौरी के प्रिय पात्र कैलाश मिश्रा की शिवराज के प्रिय मित्र आलोक शर्मा के हाथों 86 हजार से ज्यादा वोटों से शिकस्त और इंदौर में दस साल के मुख्यमंत्री कार्यकाल से कांग्रेस की बदहाली की इबारत लिख चुके दिग्विजय सिंह की समर्थक अर्चना जायसवाल की भाजपा विधायक मालिनी गौेड़ से करीब ढाई लाख वोटों से हार ने साबित कर दिया है कि कांग्रेस भाजपा से तो लगातार हार ही रही है, उसके अपने खंड खंड बंटे गुटों की भी इसमें बड़ी भूमिका है। ऐसा नहीं है कि भोपाल, इंदौर और जबलपुर में बीते पांच साल से भाजपा के मेयर होने की वजह से जनता की समस्याओं का अंत हो चुका था और वहां एंटी इंकंवेंसी फैक्टर भाजपा के खिलाफ हथियार नहीं बन सकता था। कांग्रेस के आधा दर्जन क्षत्रपों ने पार्टी के प्रत्याशियों और कार्यकर्ताओं को अनुशासनवद्ध और संगठन आधारित भाजपा से पिटने के लिए छोड़ दिया है। यही कांग्रेस कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता पंचायत चुनाव में भाजपा में भारी पड़ रहे हैं, क्योंकि बकौल दिग्विजय सिंह पंचायत चुनाव में टिकट नहीं बंटते। चार नगर निगमों के चुनाव नतीजे भाजपा की संगठनात्मक कुशलता की वजह से तो हैं ही वे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की लोकप्रियता और प्रदेश के विकास पर एक बार फिर मुहर लगने का सबब भी हैं। इतना ही नहीं इस पूरे चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के बरकरार रहने की तस्दीक भी हुई है, क्योंकि भाजपा ने जनता को बताया कि केंद्र में मोदी सरकार, प्रदेश में भाजपा सरकार और अब आपके नगर में भी भाजपा सरकार आपकी समस्याओं को खत्म कर देगी। विकास की नई इबारत लिखी जाएगी और मप्र के शहर अब र्स्माट सिटी बन सकेंगे। भाजपा के संगठन और सरकार पर यह महती जिम्मेदारी है कि वे इन वादों को नारों से जमीन पर उतार कर दिखाएं और कांग्रेस के लिए यह सबक है कि अब भी नहीं चेते तो भाजपा के मिशन कांग्रेस मप्र और कांग्रेस रहित भारत को कांग्रेस के नेता ही सफल कर देंगे। जनता ने अपना मेंडेंट और संदेश दे दिया है कि उसे लफ्फाजी नहीं विकास चाहिए, अब बारी केंद्र, राज्य और नगर सरकारों की है कि वे प्रदेश के महानगरों को अच्छा ट्रैफिक सिस्टम, पार्किंग सुविधा, पानी, सड़क और तरतीब से बसी कॉलानियां दें। गलत करने वालों को सजा दें और विकास में सहभागी बनने वाले सभी वर्गों को सुविधाएं हैं। उम्मीद की जाना चाहिए कि जीत के संदेश को सत्ताधारी दल भाजपा सही अर्थ में लेगी और हार के तल्ख संदेश को ग्रहण कर कांग्रेस भी विपक्ष की भूमिका में शिद्दत से उतरेगी।
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