संयुक्त मध्यप्रदेश यानी छत्तीसगढ सहित मध्यप्रदेश और सिर्फ छत्तीसगढ राज्य के शीर्ष कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल यानी वीसी यानी विद्या भैया का अवसान हो गया। नक्सली हिंसा का शिकार वीसी शुक्ल अपने अंतिम दिनों में भले छोटे से राज्य छग के एक गुट के नेता रह गए हों लेकिन एक जमाना था जब वे कांग्रेस में देश के सबसे ताकवर आधा दर्जन नेताओं में शुमार होते थे। इंदिरा संजय गांधी और आपातकाल के दौर में वे कांग्रेस के सर्वशक्तिमान समूह में शामिल थे। नौ बार सांसद रहे, कई दफा केंद्रीय मंत्री कांग्रेस में भी और कांग्रेस से बाहर होकर भी मंत्री रहे। अपना खुद का एक मोर्चा बनाया जनता दल का दामन थामा, यहां तक कि भगवा दल भाजपा में भी गए और शीघ्र ही अपने घर कांग्रेस में लौटे। बतौर पत्रकार मेरा वास्ता विद्या भैया से उस वक्त रहा जब में दैनिक नई दुनिया में राजनीतिक रिपोर्टर था। भोपाल में उनके गुट के कार्यकर्ता नेता और भोपाल आगमन पर वीसी हमारे न्यूज सोर्स थे। वे आॅफ द रिकार्ड बातचीत में जितने बेबाक थे, आॅन रिकार्ड बातचीत में उतने ही सधे हुए और संतुलित। वर्ष 1997 या 98 का एक वाकया आज बरबस याद आ रहा है। मेरे तत्कालीन पत्रकार मित्र पंकज पाठक नवभारत में थे। कांग्रेस या भाजपा को कोई केंद्रीय नेता या मंत्री भोपाल आता तो हम उनसे मिलने खबर की तलाश में जाते थे, कई दफा अकेले अकेले और कई दफा साथ साथ। एक दिन वीसी भोपाल आए और लेक व्यु अशोक में रूके थे। हमने उनसे संपर्क किया तो उन्होंने पाठक जी और मुझे रात के भोजन पर बुलाया। वीसी के कक्ष में हम तीन ही थे और भोजन कर रहे थे। खुद बहुत कम और संतुलित भोजन लेने वाले विद्या भैया अपने अग्रज मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री पं. श्यामाचरण शुक्ल यानी श्यामा भैया की तरह आतिथेयों को मनुहार कर करके ख्ूाब खिलाने वाले थे। खैर हम भोजन कर रहे थे, तभी अचानक एक बिन बुलाए मेहमान आ गए। वे उस वक्त पत्रकार की हैसियत से आए थे, हालांकि वे एक कांग्रेस के बागी हुए निर्दलीय विधायक के खासम खास हुूआ करते थे। जो इन दिनों भी कांग्रेस के विधायक हैं। यह साब इन दिनों एक धार्मिक संगठन के सदर भी हैं। हुआ यह कि आफ द रिकार्ड बातचीत में विद्या भैया ने कई बातें बताई। इसी सौजन्य बातचीत में इन साहब ने एक सवाल वीसी से दलबदल को लेकर पूछ लिया, उसमें भी तथ्यात्मक त्रुटि थी। इस असहज सवाल से वीसी न केवल असहज हो गए बल्कि नाराजी उन्हें चेहरे पर साफ दिखी। हम दोनों भी चुप। चंद सेकंड की खामोशी के बाद विद्या भैया ने धीर गंभीर सुर में कहा मैं ज्ञान रहित लोगों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देता। आज जब मैं देखता हूं कि कांग्रेस के राष्टीय नेता हों कि बीजेपी के, पत्रकार जब उनसे ऐसे ही ज्ञान रहित प्रश्नों की छडी लगाते हैं, तो वे उन्हें इस तरह चुप नहीं करा पाते। आयोजक भी शर्मसार होते हैं और ऐसे पत्रकार अगली प्रेस कांफ्रेंस में फिर ऐसे ही सवाल किसी और नेता से पूछते हैं। अब जबकि वीसी शुक्ल की पार्थिव देह पंचतत्व में विलीन होने जा रही है, मुझे उनकी धीर गंभीर वाणी अब भी जेहन में सुनाई दे रही है मैं ज्ञान रहित लोगों के प्रश्नों के उत्तर नहीं देता। विद्याचरण शुक्ल को मेरी श्रद्धांजलि।
बुधवार, 12 जून 2013
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