एक दीप धरें मन की देहरी पर

एक दीप धरें मन की देहरी पर
धीरे धीरे घिरता है तम,
ग्रस लेता जड़ और चेतन को
निविड़ अंधकार गहन है ऐसा सूझ न पड़ता
हाथ को भी हाथ
क्या करें,
कैसे काटें इस तम को
यह यक्ष प्रश्न
विषधर सा
कर देता किंकर्तव्यविमूढ़
तो जगती है एक किरन उम्मीद की
टिमटिमाती कंपकंपाती दीप शिखा सी
आओ लड़ें तिमिर अंधकार से,
एक दीप धरें मन की देहरी पर
प्रेम की जोत जगाएं हम
मिटे अंधियारा
बाहर का भीतर का भी,
आओ दीपमालिका सजाएं,
दीपावली बनाएं
एक दीप धरें मन की देहरी पर।।
- सतीश एलिया
धीरे धीरे घिरता है तम,
ग्रस लेता जड़ और चेतन को
निविड़ अंधकार गहन है ऐसा सूझ न पड़ता
हाथ को भी हाथ
क्या करें,
कैसे काटें इस तम को
यह यक्ष प्रश्न
विषधर सा
कर देता किंकर्तव्यविमूढ़
तो जगती है एक किरन उम्मीद की
टिमटिमाती कंपकंपाती दीप शिखा सी
आओ लड़ें तिमिर अंधकार से,
एक दीप धरें मन की देहरी पर
प्रेम की जोत जगाएं हम
मिटे अंधियारा
बाहर का भीतर का भी,
आओ दीपमालिका सजाएं,
दीपावली बनाएं
एक दीप धरें मन की देहरी पर।।
- सतीश एलिया