कोर्ट के भीतर सुनवाई चल रही है, अचानक किसी ने कहा सुनवाई पूरी हो गई। कोर्ट से बाहर निकलते आरोपी को धर दबोचने के लिए घात लगाए बैठे कैमरामेन और मीडिया क्रू उस गुलाबी शर्ट पहने व्यक्ति की ओर लपके, सवालों की बौछार। कोर्ट ने आपको सजा सुनाई है, आपका क्या कहना है? व्यक्ति तमतमा गया, क्या बेहूदगी है ये। यह किसी फिल्म या टीवी सीरियल का द्रश्य नहीं बल्कि 14 मई को भोपाल डिस्ट्रिक्ट कोर्ट के प्रांगण में घटा वाकया है। भ्रष्टाचार के आरोपी जिस असिस्टेंट कमिश्नर सुरेश सोनी की बाइट लेने दो दर्जन से ज्यादा मीडिया क्रू ने शर्ट के रंग के आधार पर जिन सज्जन को धर दबोचा वे जज महोदय थे। इतना ही नहीं जब हकीकत पता लगी तो सन्न मीडिया कर्मियों का हुजूम तो सकपका कर दांए बांए हो लिया लेकिन एक टीवी चैनल की ओवी बैन ने उनका फिर रास्ता रोक लिया। बात यहीं तक नहीं थमी असिस्टेंट कमिश्नर सुरेश सोनी को सजा सुनाई जाने की ब्रेकिंग न्यूज यह लिखकर चलाकर एक रीजनल चैनल ने टीआरपी बढा ली कि सुरेश सोनी को सजा। आठ मिनिट तक यह ब्रेकिंग न्यूज चली। जिस व्यक्ति को सजा सुनाई गई उसे नाम को लेकर यह भ्रामक सच महज इसलिए क्योंकि मप्र के सत्ताधारी दल के पित्र संगठन आरएसएस के शीर्षस्थ नेताओं में से एक सुरेश सोनी हैं। लोग ब्रेकिंग न्यूज से चैंक जाएं, यही मकसद था।
मीडिया के लिए लक्ष्मण रेखा खींची जाए या नहीं इस मामले पर छिडी बहस के बीच इस वाकये पर भी गौर करना चाहिए। जाहिर है कांग्रेस की युवा सांसद मीनाक्षी नटराजन के उस प्रस्ताव की मीडिया जगत में आलोचना हो रही है, भाव यही है कि हम सबकी खामियां निकालेंगे, हमारी कमी कैसे कोई निकाल सकता है। मीडिया पर बंधन लोकतंत्र के लिए बेडियां बन सकता है, यह सही है लेकिन यह भी उतना ही सही है कि कोई तो नियंत्रण हो। मीडिया ही आत्म नियंत्रण करे तो बेहतर लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। खासकर इलेक्ट्राॅनिक मीडिया की चकाचैंध, बाइट की भागमभाग और टीआरपी की गलाकाट स्पर्धा ने पत्रकारिता के सर्वसिद्ध और सर्वमान्य बुनियादी आधारों को ही हिला दिया है। भोपाल की घटना ने यह साबित कर दिया है कि दो दशकों में भी हमारा इलेक्ट्रानिक मीडिया शैशव में ही है। याद कीजिए कामरेड इंद्रजीत गुप्त देश के ग्रह मंत्री थे, कैबिनेट की बैठक से बाहर आते ही उनसे एक न्यूज चैनल की संवाददाता ने उनसे बाइट ली और इसके बाद उनसे उनका नाम पूछ डाला था। हैलीकाप्टर हादसे में म्रत्यु के बाद जब ग्वालियर में माधवराव सिंधिया की अंत्येष्टि हो रही थी तो एक न्यूज चैनल के एंकर को मैंने अपने संवाददाता से यह पूछते सुना था कि बताओ वहां कैसा माहौल। संवाददाता ने भी जो हुक्म मेरे आका के अंदाज में अंत्येष्टि मंे मौजूद लोगांे से पूछना शुरू कर दिया था कि आपको कैसा लग रहा है। याद कीजिए एक न्यूज चैनल ने लाल किले की पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर चलाई एक स्टोरी में सिलसिलेवार बता दिया था कि कहां से कैसे प्रवेश हो सकता है। ये चैनल भारत के अलावा कई मुल्क में दिखाई देता है। भारत में हमलों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने वालों के इससे बेहतर सामग्री और क्या हो सकती है। मुंबई पर हमले के वक्त ताज होटल में कमांडों पहुंचने वाले हैं, पहुंच गए और वे इस वक्त कहां है, यह लाइव दिखाने वाले चैनलों को आतंकवादी सरगना न केवल देखते रहे बल्कि उसी के मुताबिक आतंकियों को निर्देश भी देते रहे। निःसंदेह मीडिया की भूमिका प्रभावी विपक्ष की तरह है लोकतंत्र में। बोफोर्स से लेकर कामनवेल्थ और आदर्श सोसायटी घोटाले तक तमाम भ्रष्टाचार मीडिया के कारण ही उजागर हुए हैं। लेकिन फिर भी कोई न कोई लक्ष्मण रेख तो तय करनी ही होगी। बेहतर होगा कि यह मीडिया जगत खुद करे।
ः सतीश एलिया
मीडिया के लिए लक्ष्मण रेखा खींची जाए या नहीं इस मामले पर छिडी बहस के बीच इस वाकये पर भी गौर करना चाहिए। जाहिर है कांग्रेस की युवा सांसद मीनाक्षी नटराजन के उस प्रस्ताव की मीडिया जगत में आलोचना हो रही है, भाव यही है कि हम सबकी खामियां निकालेंगे, हमारी कमी कैसे कोई निकाल सकता है। मीडिया पर बंधन लोकतंत्र के लिए बेडियां बन सकता है, यह सही है लेकिन यह भी उतना ही सही है कि कोई तो नियंत्रण हो। मीडिया ही आत्म नियंत्रण करे तो बेहतर लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा। खासकर इलेक्ट्राॅनिक मीडिया की चकाचैंध, बाइट की भागमभाग और टीआरपी की गलाकाट स्पर्धा ने पत्रकारिता के सर्वसिद्ध और सर्वमान्य बुनियादी आधारों को ही हिला दिया है। भोपाल की घटना ने यह साबित कर दिया है कि दो दशकों में भी हमारा इलेक्ट्रानिक मीडिया शैशव में ही है। याद कीजिए कामरेड इंद्रजीत गुप्त देश के ग्रह मंत्री थे, कैबिनेट की बैठक से बाहर आते ही उनसे एक न्यूज चैनल की संवाददाता ने उनसे बाइट ली और इसके बाद उनसे उनका नाम पूछ डाला था। हैलीकाप्टर हादसे में म्रत्यु के बाद जब ग्वालियर में माधवराव सिंधिया की अंत्येष्टि हो रही थी तो एक न्यूज चैनल के एंकर को मैंने अपने संवाददाता से यह पूछते सुना था कि बताओ वहां कैसा माहौल। संवाददाता ने भी जो हुक्म मेरे आका के अंदाज में अंत्येष्टि मंे मौजूद लोगांे से पूछना शुरू कर दिया था कि आपको कैसा लग रहा है। याद कीजिए एक न्यूज चैनल ने लाल किले की पूरी सुरक्षा व्यवस्था पर चलाई एक स्टोरी में सिलसिलेवार बता दिया था कि कहां से कैसे प्रवेश हो सकता है। ये चैनल भारत के अलावा कई मुल्क में दिखाई देता है। भारत में हमलों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाने वालों के इससे बेहतर सामग्री और क्या हो सकती है। मुंबई पर हमले के वक्त ताज होटल में कमांडों पहुंचने वाले हैं, पहुंच गए और वे इस वक्त कहां है, यह लाइव दिखाने वाले चैनलों को आतंकवादी सरगना न केवल देखते रहे बल्कि उसी के मुताबिक आतंकियों को निर्देश भी देते रहे। निःसंदेह मीडिया की भूमिका प्रभावी विपक्ष की तरह है लोकतंत्र में। बोफोर्स से लेकर कामनवेल्थ और आदर्श सोसायटी घोटाले तक तमाम भ्रष्टाचार मीडिया के कारण ही उजागर हुए हैं। लेकिन फिर भी कोई न कोई लक्ष्मण रेख तो तय करनी ही होगी। बेहतर होगा कि यह मीडिया जगत खुद करे।
ः सतीश एलिया
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