पैदाइशी भोपाली वो भी बर्रूकाट खानदान
के चश्मो चिराग मियां जुम्मन ने जब से होश
संभाला है बिला नागा बड़े तालाब को दिन में
तीन दफा जरूर देखते हैं, कभी भोपाल से बाहर
तशरीफ ले जाना पड़े तो तालाब ख्वाब में नजर
आकर उलाहने देता है म्यां आज कां
रै गए, एक दफा भी दीदार नईं हुए। सो मियां
जुम्मन सन छप्पन से आज तलक छप्पन दफा भी
शहर से बाहर नहीं गए। सन छप्पन में ही
उनकी वो उमर थी, जिसे होश सम्हालना
केते हेंगे, यानी येई कोई आठ दस बरस के
रहे होंगे। तब से ये शेहर मध्येपरदेश की
राजधानी भी बना हैगा। खैर शनीचर को
अलसुबह जुम्मन ने रोज की तरह बड़े तालाब के
किनारे तफरीह शुरू की ही थी कि तालाब के
बुर्ज पर रोशन राजा भोज के बुत से
सफ्फाक रोशनी का बगूला सा उठा, मियां
जुम्मन की आंखें फटी की फटी रह गईं,
होश गुम होते से मालूम पड़े, आंख खुली तो
देखा रात हो चुकी है, पास में एक रौबदार
चेहरे के मालिक को मुसकराते हुए पाया।
सर पर ताज, गले में मोतियों की मालाएं, कंधे
पर तेग टंगी हुई। मियां जुम्मन ने आंखें मली,
पूछने लगे म्यां कौन हो तुम। अब रौबदार
लेकिन मुलायम लहजा गूंजा जुम्मन उठो, मैं
हूं राजा भोज धारा नगरी का। जुम्मन के
होश कुछ ठिकाने लगे तो वे बोले, अरे
वाह जनाब आपका तो बुत तालाब में अभी
लगाया गया है, हूबहू वही हैं आप, लेकिन बुत
से निकले कैसे, सरकार को पता चला तो फिर
से बुत में भिजवा देगी। परम ज्ञानवान राजा
भोज ने भोले भोपाली मियां जु मन से कहा
मैं अपनी धारा नगरी में प्रजा के हाल जानने
भेष बदलकर निकला करता था। अब जब इस राज्य की
सरकार मेरा इतना गुणगान कर रही है,
तो मुझसे रहा नहीं गया, मैं इस शहर का
भ्रमण करना चाहता हूं, क्या तुम मेरी
सहायता करोगे। जु मन ने खुद को चोंटियां
ली हाथ में दरद हुआ तो समझ गए, ये ख्वाब नईं
बल्के हकीकत हे। बोले- राजासाब अपन तो
पक्के भोपाली हैं, मदद भी पूरी करते हेंगे,
कोई पता पूछे तो ठिकाने पेई छोड़के
आते हेंगे। वैसे आप झां खड़े हो वो तो अब
आपकेई नाम से सड़क केलाएगी, चीफ मिनिसटर
ने के दिया हैगा, जे तालाब भी आपके नाम पर
करने का भी एलान हो चुका है, मगर अपन तो
बड़ा तालाब केते थे, केते हैं, केते रहेंगे।
चलो घुमाए देते हैं भोपाल पूरा, बोलो
नया घूमोगे के पुराना। भोज बोले वत्स, हम
पूरे नगर का भ्रमण कर जनता का हाल जानना
चाहते हैं, नवीन प्राचीन में भेद करना हमारी
नीति नहीं हैं। राजा भोज मियां जु मन के साथ
नगर भ्रमण पर निकले, आईए देखें वे कहां
कहां गए और क्या क्या देखा।
दृश्य एक
करबला के सामने से कटते हुए वे उस सड़क पर
जा पहुंचे, जहां कलेक्ट्रेट है। सड़क खुदी
देखकर राजाभोज चौंके, जु मन से पूछा वत्स,
ताल किनारे के मार्ग की भव्यता के विपरीत चंद ही
कदम दूर इस मार्ग की ऐसी दुर्दशा क्यों? जु मन
बोले- साब ये सवाल तो भोपाल की पब्लिक अर्से से
पूछ रई हे, मगर कोई जवाब कहीं से नईं
आता, आपका बुत तालाब में लगवाने वाले गौर
साब भी नईं देते जवाब। भोज ने अचानक तीक्ष्ण
दुर्गंध महसूस की, बोले वत्स ये दुर्गंध इस भवन की
ओर से आती प्रतीत हो रही है, क्या हुआ
इस भवन में क्या कार्य होता है यहां। जु मन
बोले- सरकार ये कलेक्टरेट हे, ये बदवू
केरोसिन की है, यहां एक किसान ने जमीन का
नामांतरन रिश्वत देने के बाद भी नईं होने पर
मिट्टी का तेल डालकर खुदकुशी कर ली थी, तब से
जिनके दिल पाक साफ होता है, उन्हें तेल की
बदवू और आदमी के जलने की बदवू खुद ब खुद आती
हेगी, बाकी लोग दिन भर यहां रेते हैंगे,
नेता भी गुजरते हेंगे, किसी को नईं आती बदवू।
भोज का चित्त द्रवित हो गया, वे ओर ज्यादा देर
वहां नहीं ठहर सके।
दृश्य दो
जुम्मन के साथ राजा भोज शहर में आगे बढ़े
बढ़ी सी इमारत दिखी तो पूछा वत्स ये कौन सा
भवन है। जुम्मन बोले, जनाब इस तरफ ताजुल
मसाजिद और दूसरी तरफ ये गांधी मेडिकल
कॉलेज है, आइए घुमा लाएं। वे मुडऩा ही
चाहते थे, कि भोज ठिठक गए, ये चीखें कैसी हैं, ये नीचे जाते मार्ग पर लहू कैसा है? जुम्मन ने कहा राजा साब एक दिन इस रस्ते पर पुलिस
की एक गाड़ी के ब्रेक फेल हो गए थे। कई आदमी
औरतें, बच्चे, स्टूडेंट उससे कुचल मरे।
उस वाकये को तो भौत दिन होगए, जांच का भी
पता नईं चला मगर आप भी खूब हैं, अब तक लहू
और चीखें महसूस कर रए हैं। खैर जुम्मन भोज
को हमीदिया अस्पताल लिवा ले गए। सिहर उठे
भोज, लगभग विलाप की मुद्रा में बोले, वत्स तुम
मुझे कहां नरक में ले आए, लोग विलख रहे
हैं, उनकी कोई सुन नहीं रहा, ये कौन
हैं जो इन विपदाग्रस्त लोगों को पशुओं की
तरह हकाल रहे हैं। जुम्मन बोले-जनाब ये
डॉक्टर, नर्स, बॉर्ड ब्यॉय हैं जो गरीब
मरीजों का इसी तरह इलाज करते हैं। भोज
बोले राज्य सत्ता के कोई अमात्य या गण इस
अव्यवस्था पर विराम नहीं लगा पाते। जु मन ने
आसमान में बिसूरते हुए कहा-अल्ला करे तो
करे, इंसानों के बस की बात तो मुझे नहीं
लगती जनाब।
दृश्य तीन
जुम्मन शहर के पुराने कहे जाने वाले
हिस्से में जाने के बजाय कमला पार्क की ओर
आ गए। भोज ने कहा वत्स ये तो फिर ताल का
किनारा गया, अब हम किस और प्रस्थान कर
रहे हैं। अरे, वत्स ताल के पाल पर ये खनन कार्य
क्यों हो रहा है,क्या ये मेरे ताल को
प्रवाहित करने की युक्ति है? जुम्मन बोले-
अरे नई जनाब, ये तो शहर में सड़कों
को चौड़ा करने की स्कीम है, मगर पूरा
शहर जगह जगह इतना और इतने दिनों से
खुदा पड़ा है कि मुंह निकल पड़ता है या खुदा।
इसके बाद वे पॉलीटेक्रिक चौराहा होते
हुए रोशनपुरा चौराहे पर खुदाई के
दृश्य देखते हुए पहुंचे। यहां से आगे बढ़ते ही
सड़कों के सौंदर्य से भोज अभिभूत से हो गए।
लिंक रोड नंबर एक पर पहुंचते वे बोले- ये
बड़े बड़े आवास, बढिय़ा मार्ग, हरीतिमा, बड़े
बड़े वाहन, क्या हम किसी दूसरे नगर में प्रवेश
कर रहे हैं। जु मन बोले- अरे जनाब ये
नया भोपाल है, ये बंगले मिनिस्टरों के हैं,
ये सड़क एक साल में तीन दफा बन चुकी है, बनाने
वाला भी और बनवाने वाला भी भोत नाम और
नामेवाले लोग हैं।
दृश्य चार
जुम्मन 74 बंगले से बिरला मंदिर होकर
विधानसभा, वल्लभ भवन के रास्ते पर कट लिए।
मंदिर के शिखरों को निहारते हुए भोज
ने पूछा वत्स ये बौद्ध स्तूप सदृश्य भवन क्या है?
जु मन ने गर्व से बताया ये हमारे परदेश की
विधानसभा है, बिल्डिंग बनना शुरू हुई
तो 12 करोड़ लागत तै हुई थी, बनी तो 72
करोड़ लग चुके थे, अवार्ड मिल चुके हे आगा
खां अवार्ड। वल्लभ भवन को देखकर भोज कुछ
कहते, जुम्मन बोले- और ये हे वल्लभ भवन, फिर
सतपुड़ा और विंध्याचल भवन। यहीं से परदेश
की सरकार चलती हेगी, जे सामने झुगिगयां
बनी हैं, पूरे देश में जनाब किसी भी स्टेट
के सेक्रिटिएट के सामने झुगगी नईं हैं, मगर
अपना भोपाल तो भोपाल हे, यहां सब चलता है।
ठंडी सड़क से कटते हुए, 1250 से गुजरते हुए
जुम्मन चार इमली की घाटी चढ़ गए। भोज अब
थक चुके थे, बोले वत्स यह हरा भरा बंगलों से सज्जित कौन सा प्रदेश है। जुम्मन बोले-अरे जनाब भोपाल ही है, कभी इस इलाके
में ईमली का एक बड़ा पेड़ था, सुनसान जगह थी,
चोर यहां आकर माल की हिस्सा बांटी करते
थे, हमने ऐसा अपने बुजुरगों से सुना है। अब
यहां मिनिस्टर, अफसर रहते हैंगे। भोज ने
सड़कें चकाचक और बंगले चमचमाते और चमचमाती
बड़ी बड़ी गाडिय़ां देखीं तो बरबस कह उठे,
वत्स यहां आकर अनुभूति हुई कि यह राज्य
सुसपंन्न है।
दृश्य पांच
जुम्मन अब यहां से मुड़े तो हबीबगंज नाके
पर रेलवे फाटक तक जा पहुंचे, फाटक
बंद देख बोले- जनाब ये फाटक ज्यादातर वक्त
बंद ही रहता है, चलो अंडब्रिज से चलते हैं।
रेलवे अंडरब्रिज की दुर्दशा से गुजरते हुए वे होशंगाबाद रोड पर आ गए। भोज बोले,वत्स ये मार्ग कहां जाता है। जुम्मन बताने लगे
इसे होशंगाबाद रोड कहते हैंगे, कहने
को नेशनल हाइवे है, लेकिन हालत ये हैगी
कि होशंगाबाद तक जाने में जान ही निकलते
निकलते बमुश्किल ही बच पाती हे। भोज ने पूछा
नगर की सीमा समाप्त कब होगी, जु मन बोले-
जनाब ये भोपाल की पूंछ समझो, इसी तरफ
बढ़ता ही जा रिया बढ़ताई जा रिया है।
भोज ने जुम्मन से कहा वत्स, शहर की दूसरी
बस्तियों में भी भ्रमण करना है, क्यों न लौट
चलें। जुम्मन बोला, वापस एक शर्त पर चलेंगे, आप
मुझसे वादा कीजिए, हमारे शहर का नाम
भोजपाल करने पर तुली सरकार क़ो बता
देंगे कि आप इस शहर का नाम नहीं बदलवाना
चाहते। भोज असमंजस में फंस गए। कुछ देर सोचने
के बाद वे अपना निर्णय सुनाना ही चाहते थे कि
जुम्मन को उनकी बेगम ने झिंझोडकर उठा
दिया। अरे,अशरफ के अब्बा दिन चढ़े तक सोते
ही रहोगे या घूमने भी जाओगे। जु मन
बोले-प्रिय तुमने मेरा स्वप्र भंग कर दिया, वे
मुझे वरदान देने ही वाले थे। बेगम चौंक गई
खाबिंद की बोली में इस बदलाव से। बोलीं आज
आपको ये हो गया है, केसी बहकी बहकी
बाते कर रिए हो। जुम्मन उठे और तालाब
की ओर चल पड़े, बुर्ज पर राजभोज की भव्य
प्रतिमा को देखकर इत्मीनान हो गया कि सब कुछ
कल के ही ठिए पर है, कुछ नहीं बदला, वे ख्वाब ही देख रहे थे। आमीन
-बकलम सतीश एलिया
शनिवार, 19 मार्च 2011
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2 टिप्पणियां:
आप को सपरिवार होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
अभी लेख नही पढा बाद मे पढते हे
वाह जनाब । सूरमा भोपाली की जबान के मार्फत साफ कह दिया कि नाम का खेल आपको पसंद नहीं । वैसे पसंद तो हमें भी नहीं है क्योंकि इससे कोई फायदा होता नहीं दिखता। वैसे ये इतिहासविदों से पूछना चाहिए कि क्या वाकई भोपाल का नाम भोजपाल ही था। और अगर ये सिलसिला चल निकला तो फिर दिल्ली को भी हस्तिनापुर या इंद्रप्रस्थ कहेंगे। लखनउ को लक्ष्मणपुरी, दमोह को दमयंतीपुर इत्यादि। फिर इसमें दूसरा तडका ये लग सकता है कि आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों के जो नाम हैं, उनको बदला जाये जैसे कि अहमदाबाद।
कुल मिलाकर व्यंग्य ने होली का मजा दूना कर दिया। बधाई हो।
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