बुधवार, 19 मार्च 2025

संभल, महू, नागपुर.....दंगे अनेक, जड़ एक...अधूरा बंटवारा, पूरा वोट बैंक ! - सतीश एलिया

जो संभल में हुआ,  तमाम ऐहतियात,  चौकसी, सख्ती, चाक-चौबंद सुरक्षा इंतजाम के दावों के बावजूद वही महू में हुआ और ठीक वैसा ही अब नागपुर में भी हुआ। तीन अलग अलग राज्य उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और अब महाराष्ट्र , तीनों जगह 'डबल इंजन' सरकार और बुलडोज़र की नजीरें, नागपुर  में तो विश्व के सबसे बड़े  सामाजिक संगठन का मुख्यालय भी है, लेकिन पिटा कौन, संपत्ति किसकी लुटी,  नष्ट हुई ? जो डबल इंजन चलाने बुलडोज़र चलाने में अपने वोट की आहूति देता है। भारी कौन? वो वर्ग जो ' गंगा- जमुनी ' जैसै  फर्जी जुल्मों को जूते की नोंक पर रखकर ठोकर मारता है और भारत की टीम के हारने का जश्न मनाता है, शोभायात्राओ पर पथराव करता है और गाय काटते है, जो औरंगजेब और बाबर को अपना पुरखा मानता और उनके कुकर्मो पर फख्र महसूस करता है, जो लाल किला, ताजमहल को अपने मालिकाना हक के सुबूत बताता है। जो जमींदोज हो चुकी ' बाबरी' को फिर तामीर करने के नारे पर सोशल मीडिया पर ऐलानिया खुद को कुर्बान करने की बात कर रहा है  जबकि सच्चाई यही है कि जो वर्ग खुद को आततायी मुगलों समेत अन्य विदेशी आक्रांताओ से खुद को जोड़कर देख रहा है, उसके पुरखों को उन्हीं आक्रांताओ ने धर्म भ्रष्ट कर, अपमानित कर मा मारकर कन्वर्ट किया था। आज जो उनकी असल पहचान नहीं है। वे एक तरह से उस विचार, उस आक्रांता पहचान के साथ खड़े है जो उनके पुरखों की गुनहगार है। वे उनके खिलाफ कर दिए गए हैं या बरगलाकर किए जा रहे हैं जो आक्रांताओ के आगे झुके नहीं अपने धर्म  पर टिके रहे। जिन्होंने अपने मठ, मंदिर,  गुरुद्वारे,  धर्म बचाने कष्ट सहे, बलिदान दिए और अपने राष्ट्र को बचाए रखा।                                             संभल, महू, नागपुर से पहले बीते करीब 90 बरस में जो दंगे भारत भूमि में हुए उनकी जड़ एक ही है। इस जड़ को पूरी तरह से उखाड़ने का इकलौता अवसर  78 साल पहले आया था जब मजहब के नाम पर भारत के एक भूभाग को अलग कर उसे पाकिस्तान नाम देकर एक अलग मुलुक बनाया गया। लेकिन जिस बिना पर मुल्क तकसीम किया गया उस पर ही मुकम्मल अमल नहीं किया गया, बल्कि होने ही नहीं दिया। उस मुल्क में उस जमीन के मूल बाशिंदे जो मुसलमान नहीं थे, अपनी मिट्टी से मुहब्बत और जिन्नाह के सेक्युलर फरेब में आकर वहीं रह गए, दोयम दर्जे में जी जीकर या मर मरकर 23 फीसद से चार पांच फीसद रह गए। जो मुसलमान यहाँ से पाकिस्तान को जन्नत मिलना समझकर गए, उनकी तीसरी पीढ़ी मुहाजिर की जलील पहचान के साथ वहाँ रहती है। भुखमरी और आटे के लाले में मुब्तिला पाकिस्तानी आबादी में इन्हीं की तादाद ज्यादा है। हालांकि पाकिस्तान से अलग बांग्लादेश बनने और 55 साल बाद बांग्लादेश के फिर पाकिस्तान कई तरह बन जाने की कहानी बंटवारे मुकम्मल न होने के गुनाह का ही बड़ा हिस्सा है लेकिन बलूचिस्तान के हालात फिर वही साबित कर रहे हैं जो 1971 में अलग बांग्लादेश बनने से साबित हुआ था। अलग बलूचिस्तान बन भी गया तो भविष्य में वो भी आज के बांग्लादेश की तरह नहीं हो जाएगा, इसकी गारंटी कोई नहीं  ले सकता।  लेकिन अब सवाल बांग्लादेश या बलूचिस्तान का नहीं है। सवाल 78 साल से जारी भारत की एक बड़ी आबादी का भारत विरोधी दंगाई होने का है। मुकम्मल बंटवारा यानी एक एक मुसलमान को पाकिस्तान भेजना और एक एक गैर मुसलमान को 1947 में अलग मुलुक पाकिस्तान बना दी गई जमीन से भारत लाना था। यही न होना 78 साल से मुसलसल दंगों की जड़ है। सरकार को अब पूरी तैयारी के साथ एक देश एक कानून यानी सेक्युलर सिविल कोड या समान नागरिक संहिता लानी और लागू करनी ही होगी। हर दंगे को जाने देने और होने के बाद बुलडोजर या अन्य एक्शन से वास्तव में कोई नतीजा निकलने वाला नहीं है। सुरक्षा बलों,  जरूरत पड़े तो सेना को देश के भीतर उसी तरह मुस्तैद रखना होगा, जैसा हम देश की सीमाओं पर करते हैं। सबका विश्वास नारे में उन लोगों को पहचान कर अलग थलग करना होगा जो इस विश्वास में ' विष' की तरह शामिल हैं और देश को दंगों का विषपान करने पर विवश कर रहे हैं। 1947 में जिनके लिए पाकिस्तान बना उनको 100 फीसदी वहाँ न भेजकर जो भयंकर भूल उस वक्त के लीडरान ने की , उसे दुरुस्त करने के उपाय खोजने ही होगें,  ये आज के नेतृत्व की ही जिम्मेदारी है, भारत अपना पूरा समर्थन इस वक्त के नेतृत्व को दे रहा है। भारत के भीतर फल फूल रहे और खुली आँखों से दिख रहे ' छोटे छोटे पाकिस्तान '  दीर्घकालीन बहुआयामी रणनीति बनाकर  नेस्तनाबूद करने ही होंगे। सबका विकास में अनजाने, अनचाहे ही इनका भी विकास होने की भूल गलती को दुरूस्त करना होगी। ये न हुआ तो संभल, महू,  नागपुर.....यह फेहरिस्त विष बेल बढती ही रहेगी। अगर हम अगले  22 बरस में 1947 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थ व्यवस्था बनना चाहते हैं, विश्व गुरु कहलाना चाहते हैं तो भारत को दंगामुक्त बनाए बिना यह कैसै संभव होगा? भारत की बहुसंख्यक आबादी भारत में वैसै रहेगी जैसी पाकिस्तान में अल्पसंख्यक आबादी रहने को मजबूर है तो भारत परम वैभव के लक्ष्य को हासिल कर पाएगा क्या? दंगों को जन्म देने वाली विष बेलों को समूल नष्ट करना ही होगा।