* *मोदी की गारंटी पर मुहर और कांग्रेस के बदले ने ढहा दिया केजरीवाल का ' शीशमहल* '...
* *सतीश एलिया*
लगभग 27 वर्ष का सूखा समाप्त करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने नई दिल्ली विधानसभा के चुनाव में प्रचंड बहुमत के साथ विजय हासिल की है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उठी भारतीय जनता पार्टी की आंधी में न सिर्फ बड़े-बड़े किले ढह गए बल्कि इंद्रप्रस्थ से आप का तंबू ही उखड़ गया। भाजपा के लिए यह बड़ी उपलब्धि है क्योंकि अपने गढ़ में भाजपा वर्षों से स्वयं को बेगाना महसूस कर रही थी। लोकसभा चुनाव में लगातार दिल्ली में सफलता का परचम फहराने के बाद भी विधानसभा चुनाव में सफलता दूर की कौड़ी हो गई थी। इस बार सत्ता की हेट्रिक कर चुकी आप पार्टी को जहां सत्ता विरोधी लहर ने डुबोया, दूसरी तरफ सफल रणनीति के चलते भाजपा के पक्ष में चली लहर ने मानों तूफान का काम किया। नतीजा यह रहा कि अन्ना आंदोलन को हाईजैक कर बनी और एक एक कर नामचीन साथियो को जलील कर निकालने से वन मैन आर्मी बन।गई 'आप' के 'शिखर पुरुष' शीशमहल वाले अरविंद केजरीवाल का सशक्त किला ही ढह गया। केजरीवाल की तरह तिहाड़ याफ्ता पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया सुरक्षित सीट ढूंढने के बावजूद खेेत रहे, तो सौरभ भारद्वाज, सोमनाथ भारती, सत्येंद्र जैन और दुर्गेश पाठक भी किनारे नहीं लग सके। जैन भी तिहाड़ी हैं। और तो और लोकप्रिय ‘शिक्षक’ से आप नेता बने अवध ओझा भी पहली ही डुबकी से उभर नहीं पाए। मुख्यमंत्री आतिशी मार्लेना ही एकमात्र दिग्गज आप नेता रहीं जो मोदी के तूफान में अपनी किश्ती बामुश्किल किनारे ला सकीं।अब ही नेता प्रतिपक्ष बनेगी ऐसा तय माना जा सकता है।
राष्टीय राजधानी दिल्ली विधानसभा की 70 में से इस बार 68 सीटों पर चुनाव लड़ी भाजपा (दो सीट एनडीए सहयोगी जद (यू) और एलजेपी को दी थीं) 48 सीट पर विजय पताका फहराने में सफल रही। वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले उसने अपनी ताकत में आठ गुना इजाफा किया। वर्ष 2020 के चुनाव में उसे मात्र आठ सीट से संतोष करना पड़ा था। वहीं आम आदमी पार्टी 62 से 22 पर सिमट आई। भ भाजपा का स्ट्राइक रेट 71 प्रतिशत रहा और आप का 31 प्रतिशत रहा। कांग्रेस को लगातार तीन विधानसभा और लगातार तीन लोकसभा चुनाव में शून्य सीट मिलने से उसकी शर्मनाक डबल हैट्रिक लग चुकी है। एक पार्टी जिसका नेता खुद भी और जिसके बचे खुचे कार्यकर्ता भी उसे देश का भावी प्रधानमंत्री सोशल मीडिया पर अब भी बता रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी को हालांकि लोकसभा चुनाव 2024 के मुकाबले वोट प्रतिशत चार फीसदी घट गया है। लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव (2020) के मुकाबले लगभग नौ प्रतिशत वोट बैंक बढ़ा है। उधर, आप का वोट बैंक बीते विधानसभा चुनाव के मुकाबले दस प्रतिशत घटा है। इस चुनाव में मोदी की गारंटी ने तो काम किया ही, सीएम चेहरा घोषित न करना भी भाजपा की रणनीतिक जीत भी है। अरविंद केजरीवाल लंबे समय से सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते रहे हैं, ताकि स्वयं को प्रधानमंत्री पद का दावेदार साबित कर सकें। लेकिन यही महत्वाकांक्षा इस बार उनके लिए हानिकारक साबित हुई। इस बार भाजपा ने मुख्यमंत्री चेहरा घोषित न करते हुए बार-बार प्रधानमंत्री मोदी से केजरीवाल पर हमले करवाए। आप को आप‘दा’ घोषित करने के अलावा मोदी ने ‘शीशमहल’ जैसी लोकप्रिय शब्दावली का भी प्रयोग किया। वहीं जनता जनार्दन से ‘मोदी को सेवा का अवसर देने’ की विनम्र अपील भी की। जो कारगर साबित हुई। भाजपा ने केजरीवाल के शीशमहल की वाीडियो क्लिप भी जारी की और बताया कि इस पर 45 करोड़ रूपए खर्च किए गए हैं।
उधर, मतदान के चार दिन पूर्व केंद्रीय बजट में मध्यम वर्ग को राहत देते हुए बारह लाख तक की आय टैक्स फ्री करना भी तुरुप का पत्ता साबित हुआ। दिल्ली में 67 फीसदी आबादी मध्यम वर्ग की बताई जाती है। साथ ही भाजपा ने सैद्धांतिक असहमति के बावजूद मुफ्त रेवडी बांटो प्रतियोगिता का मप्र, महाराष्ट्र की ही तरह हिस्सा बनते हुए चुनावी घोषणा-पत्र में गरीबों, महिलाओं और बुजुर्गों के लिए अनेक प्रकार की आर्थिक मदद की भी घोषणा की। जिसे मोदी की गारंटी मानते हुए जनता ने सहर्ष समर्थन दिया। फिर अपनी परंपरा कायम रखते हुए भाजपा ने 67 प्रतिशत उम्मीदवार भी बदल दिए, जिनमें से एक तो वर्तमान विधायक ही थे। इसके साथ आम आदमी पार्टी के एकछत्र नेता अरविंद केजरीवाल के ‘कट्टर ईमानदार’ के दावे को ‘कट्टर बेईमान’ साबित करने में भी भाजपा सफल रही। जिसमें केजरीवाल का 177 दिन जेल में रहना, शराब घोटाला, शीशमहल और जल बोर्ड घोटाले ने आग में घी का काम किया।
*कांंग्रेस में भी खुशी का माहौल*
भारतीय जनता पार्टी के साथ कांग्रेस भी दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणामों पर जश्न मना रही है। भाजपा तो विजय का जश्न मना रही है, लेकिन पराजय के देशव्यापी सिलसिले के कायम रहने के बावजूद कांग्रेस को आम आदमी पार्टी की पराजय की खुशी है। कांगेस और आप में अदावत लोकसभा चुनाव के बाद से ही शुरू हो गई थी, जो चुनाव का कारवाँ बढ़ने के साथ-साथ तीखी कटुता में बदलती चली गई। इंडी गठबंधन के अन्य दलों दकि आप को समर्थन मिलने के बाद तो यह लड़ाई कांग्रेस के अस्तित्व का सवाल बन गई थी। ऐसे में अकेले ही चुनाव लड़ना उसकी मजबूरी बन गई। हालांकि कांग्रेस के लिए प्रसन्नता का विषय यह है कि उसके पास खोने के लिए कुछ था भी नहीं और उसने खोया भी नहीं। उसने अपने 2020 के चार प्रतिशत वोट बैंक में दो प्रतिशत का इजाफा जरूर किया। निश्चित ही यह राहुल प्रियंका के परिश्रम का प्रतिफल हर्ष है। लेकिन लगता है कांग्रेस में इससे अधिक खुशी इस बात की है कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी की चौदह सीटें हरवाने में कामयाब रही, जिसमें स्वयं अरविंद केजरीवाल की नईदिल्ली सीट भी शामिल है। यहां केजरीवाल चार हजार से अधिक मतों से भाजपा के प्रवेश वर्मा से चुनाव हारे। तीसरे स्थान पर रहे कांग्रेस उम्मीदवार पूर्व सांसद संदीप दीक्षित को 4,500 से अधिक वोट मिले। इस तरह उन्होंने तीन बार सीएम रहीं अपनी माँ शीला दीक्षित की हार का बदला केजरीवाल से ले लिया। यह परिणाम बताते हैं कि यदि दिल्ली में आप और कांग्रेस मिलकर लड़ते तो 36 सीट जीत सकते थे क्योंकि 22 पर आप जीती है और 14 पर कांंग्रेस के कारण पराजित हुई। इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा के लिए बी-टीम का काम किया है और इस बात की कांग्रेस को खुशी भी है क्योंकि वह आप से बदला लेने में सफल रही। इस प्रकार दिल्ली में आप और कांग्रेस की आमने-सामने की लड़ाई भाजपा को बहुत भायी। यह बात अलग है कि कांग्रेस के कुल सत्तर में से नब्बे फीसदी उम्मीदवार जमानत भी नहीं बचा पाए जो कि एक राष्ट्रीय पार्टी के लिए दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ही कही जाएगी।
कुल मिलाकर 27 वर्ष बाद भाजपा दिल्ली में अपना परचम फहराने में सफल रही है। उसके दुर्भाग्य की शुरूआत 1993 से प्रारंभ हुई थी जब नईदिल्ली राज्य गठन के बाद पार्टी को सफलता हासिल हुई और दिल्ली के लोकप्रिय नेता मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने। लेकिन आंतरिक गुटबाजी के चलते साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बना दिए गए। अगले 1998 के चुनाव आने के पूर्व सुषमा स्वराज भी दिल्ली की मुख्यमंत्री रह चुकी थीं। पांच साल में तीन मुख्यमंत्री बनने के बाद 1998 में कांग्रेस की शीला दीक्षित मुख्यमंत्री बनीं और चुनाव जीतकर लगातार तीन बाद मुख्यमंत्री बनीं। बाद में 2013 से केजरीवाल की नवगठित पार्टी ने दिल्ली की सत्ता संभाल ली।
बहरहाल, लंबे वनवास के बाद भाजपा को एक बार फिर इंद्रप्रस्थ हाथ आया है। उसके सामने मुख्यमंत्री चयन की चुनौती है। अपनी परंपरा को बरकरार रखते हुए लगता है कि वह कोई चौंकाने वाला नाम ही देगी। वैसे पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के पुत्र प्रवेश वर्मा भी केजरीवाल को हराकर जाइंट किलर कहे जा रहे हैं। वैसे भी वे पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं तथा पूर्व सांसद भी हैं। उनका मध्यप्रदेश से भी नाता है, वे वरिष्ठ भाजपा नेता पूर्व मंत्री , पूर्व नेता प्रतिपक्ष, पूर्व भाजपा प्रदेश अध्यक्ष, पूर्व राज्य सभा सदस्य विक्रम वर्मा के दामाद हैं। उधर दिल्ली के पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया को हराकर तरविंदर सिंह मारवाह भी जाइंट किलर बन गए हैं। इससे इतर दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेव की मेहनत भी कमतर नहीं आँकी जा सकती। पूर्व अध्यक्ष मनोज तिवारी भी पूर्वांचलियों के नेता बनकर दावेदारों की सूची में शामिल हैं। देखना यह है कि इंद्रप्रस्थ का सिंहासन किसे मिलता है। सीएम कुर्सी मिले किसी को लेकिन दिल्ली में चलेगी मोदी की ही जिन्होंने अपने विजय संदेश में यमुना की सफाई और आप के भ्रष्टाचार की धुलाई को प्राथमिकता के तौर पर जाहिर कर दिया है। उम्मीद की जाना चाहिए कि दिल्ली अब भारत की विश्व स्तरीय राजधानी बनने की यात्रा शुरू करेगी।