रविवार, 3 सितंबर 2017

एक फोटो ने जो कहा......बस वही, सिर्फ वही धर्म है..... एक फोटो ने जो कहा......बस वही, सिर्फ वही धर्म है..... एक फोटो ने जो कहा......बस वही, सिर्फ वही धर्म है.....

                                                                                                                 
                                                                                                                                                                       एक मार्मिक फोटो व्हाट्स ग्रुप पर आया है, जिसमें सजी धजी नन्हीं बिटिया एक हलाल किए गए बकरे के ताजा सिर के पास गिलास में पानी लेकर उसे पिलाने की कोशिश कर रही है। मासूम बच्ची जो कर रही है बस यही धर्म है। वह अभी न मुसलमान है और न हिंदू,न ईसाई, न यहूदी, न ....। कोई लेवल नहीं, वह बस निर्मल है ईश्वर की तरह।  यह सब लेवल हैं, जिन्हें हम अपने ऊपर चिपकाकर बहसों में उलझे हैं, जिस समुदाय के घर पैदा हो गए, उसी के पैरोकोर भी बन गए, वही सब करने लगे जो उन घरों, समुदायों में हाेता आया है सदियों से। समाज वही प्रगतिशील है, जो अमानवीय चीजों को छोड़ता जाता है। मुझे याद है हमारे घर के पीछे एक बड़ा चबूतरा है। सत्ती का स्थान है। चार बड़ी शिलाएं थीं, जिन पर स्त्रियों के मांडने सरीखे चित्र खुदे हुए थे। लोग शादी, ब्याह, तीज त्योहार पर वहां पूजा करने जाते थे। कभी पिछली सदियों में स्त्रियां सती हुई होंगी पति के निधन पर। यानी जिंदा चिता में जल गईं होगी मुर्दा पति के साथ।लेकिन अब कहीं कोई महिला सती नहीं होती। समाज ने यह स्वीकार कर लिया कि यह गलत था। आशय यह कि किसी की मजहबी परंपरा की निंदा किए बिना बदलाव पर बात तो की ही जा सकती है। इसमें किसी का मजाक नहीं किसी का अपमान नहीं, सहज बातचीत तो हो ही सकती है। कोई नीचा ऊंचा छोटा बड़ा नहीं। मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है। यहां मानवता से मतलब इंसानों भर से नहीं बल्कि जीव मात्र के प्रति समभाव, दयाभाव, करुणा भाव से है, जो बुद्ध और महावीर का संदेश है। धारयति इति धर्म: यही धर्म है। यह बिटिया बिना किसी के बताए कर रही है चित्र में बकरे के सर को पानी पिलाने की चेष्टा कर रही है, क्योंकि कल तक यही जीव उसी घर में उसी बिटिया की तरह खेलकूद रहा होगा, तो उसका उससे समभाव है। उसे पता नहीं की एक परंपरा के चलते उस कल तक जीवित बकरे का जीवन खत्म कर दिया गया है।