बीते गुरूवार की शाम एक मित्र अचानक ही मिल गए। खूब तपाक से मिले, गले भी लगे। इतना ही नहीं अपने सहकर्मी से मेरा परिचय भी कराया। परिचय कराने से पहले तक तो बात ठीक थी। लेकिन परिचय इस ढंग से कराया कि मैं सकपका और सहम गया। असल मंे उन्होंने कहा कि इनसे मिलिए, ये श्री सतीश एलिया हैं। अब आप कहेंगे जब आपका नाम ही सतीश एलिया है तो इसमें सकपका कैसा! आपकी बात वैसे तो सही है लेकिन मैं सकपकाया इसलिए क्यांेकि हमारे देश की सरकार इन दिनों पदम श्री वगैरह से आगे बढ चुकी है। वो अब देश की सबसे बडी पंचायत संसद में आतंकवादियों को श्री कह रही है। जी हां यूपीए सरकार के ग्रह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे ने मुंबई हमले के मुख्य आरोपी दुर्दांत पाकिस्तानी आतंकवादी हफीज सईद को श्री कह चुके हैं। यथा राजा तथा प्रजा। तो जब सरकार आतंकवादियों को श्री कह रही है तो फिर जब कोई मुझे श्री कहेगा तो मैं सकपकाउं नहीं तो और क्या करूं! इससे पहले कांग्रेस के अति वाचाल महासचिव दिग्विजय सिंह ओसमा बिन लादेन को ओसामा जी कह चुके हैं। तो अब समझ में नहीं आ रहा है कि व्यक्ति को सम्मानित करने के लिए श्री और जी के विकल्प खो देने के बाद क्या किया जाए! एक दफा मप्र के तत्कालीन विख्यात और अब रसातल को जा रहे अखबार ने डाॅन दाउद इब्राहीम के भारत से फरार होने के समाचार में शीर्षक लगाया था श्री दाउद इब्राहीम भारत से फरार। श्री शिंदे और दिग्विजय सिंह जी का क्या है दिल्ली में सामूहिक बलात्कार के आरोपियों को भी श्री और जी कह सकते हैं। जैसे कि वे संसद पर हमले के मुख्य आरोपी अफजल को गुरू कहते ही हैं। उसकी फांसी पर चार साल से अमल नहीं होने दे रहे। लेकिन भाई साब मेरे नाम के पहले श्री और बाद में कोई जी लगाए तो मैं इन दिनों घबरा और सकपका जाता हूं कि मुझे भी आतंकवादी न समझ लिया जाए।
शनिवार, 22 दिसंबर 2012
सदस्यता लें
संदेश (Atom)