By - Satish Aliya
भोपाल। ये कहानी समाज को बदलने के बुलंद हौसले वाली महिला
सरपंच की है। टीकमगढ़ जिले के डूडा टोरा की सरपंच रामबाई लोधी पिछड़े वर्ग की हैं,
लेकिन उनकी सोच अपने गांव को बदलने में न केवल प्रगतिशील है बल्कि वे क्रांतिकारी
कदम उठाने में भी नहीं हिचकिचातीं।
जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर बसे इस गांव की पहचान शराब बनाने से लेकर शराबखोरी के लिए कुख्यात गांव के रूप में थी। दूसरे गांवों के लोग इस गांव में अपनी बेटियों की शादियां करने में भी हिचकिचाते थे। गांव के जवान हो रहे छोरे भी शराब के खुमार से नजदीकियां बढ़ा रहे थे। इन हालात को बदलने के लिए रामबाई की अगुआई में पंचायत ने इस साल महत्वपूर्ण फैसला किया। इसमें गांव की छवि बदलने की तीव्र इच्छा शक्ति शामिल थी।
एक मार्च 2012 को पंचायत ने शराब बंदी का सर्वसम्मत निर्णय लिया। बकायदा पंचनामा बनाया गया जिसमें दर्ज किया गया कि जो शराब बनाएगा या पिएगा, उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा और 10 हजार रुपए जुर्माना भी वसूला जाएगा। गांव के चारों तरफ प्रतीकात्मक तौर पर जूते भी टांगे गए, ताकि शराबनोशी के शौकीनों को याद रहे कि इस गांव में अब यह नहीं चलेगा।
पंचायत ने फैसले पर कड़ाई से अमल के लिए निगरानी समिति भी बना दी। शराबखोरी पर अंकुश लग गया। लेकिन हर अच्छे फैसले से कुछ लोगों को तकलीफ होती है, ऐसा पंचायत के इस फैसले को लेकर भी हुआ। दो महीने तक शराब बंदी पूरी तरह लागू रही, उल्लंघन करने वालों को चेतावनियां मिलीं। लेकिन कुछ लोगों ने पंचायत के फैसले के खिलाफ एसडीएम तक शिकायतें भेजीं।
यह तर्क दिए जाने लगे कि सामाजिक बहिष्कार जैसे फैसले पंचायत नहीं ले सकती। हालात फिर खराब होने लगे हैं। खुलेआम नहीं तो चोरी छिपे शराबखोरी शुरू हो गई है। एक अच्छे फैसले को मिले समर्थन के बाद उसकी अवहेलना होने लगने से रामबाई दुखी हैं लेकिन वे निराश नहीं हैं। पंचायत के सचिव तुलसीराम यादव ने दैनिक भास्कर से कहा कि हम अब कोई नया रास्ता निकालेंगे ताकि समाज को दुष्प्रवृत्ति से बचाने के पंचायत के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सके।
राम बाई कहती हैं हम जून के महीने में ही ग्रामसभा की बैठक में शराब बंदी के फैसले पर न केवल सहमति बनाएंगे बल्कि गांव की महिलाओं को इस अभियान में भागीदार बनाएंगे। आखिर यह गांव हमारा है और शराबखोरी से गांव के पुरूष और नौजवानों का जीवन भी तो खतरे में पड़ता है। उम्मीद की जाना चाहिए कि रामबाई के बुलंद हौसले के आगे शराबखोर पस्त होंगे और गांव में प्रगति की राह खुल सकेगी।
जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर बसे इस गांव की पहचान शराब बनाने से लेकर शराबखोरी के लिए कुख्यात गांव के रूप में थी। दूसरे गांवों के लोग इस गांव में अपनी बेटियों की शादियां करने में भी हिचकिचाते थे। गांव के जवान हो रहे छोरे भी शराब के खुमार से नजदीकियां बढ़ा रहे थे। इन हालात को बदलने के लिए रामबाई की अगुआई में पंचायत ने इस साल महत्वपूर्ण फैसला किया। इसमें गांव की छवि बदलने की तीव्र इच्छा शक्ति शामिल थी।
एक मार्च 2012 को पंचायत ने शराब बंदी का सर्वसम्मत निर्णय लिया। बकायदा पंचनामा बनाया गया जिसमें दर्ज किया गया कि जो शराब बनाएगा या पिएगा, उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाएगा और 10 हजार रुपए जुर्माना भी वसूला जाएगा। गांव के चारों तरफ प्रतीकात्मक तौर पर जूते भी टांगे गए, ताकि शराबनोशी के शौकीनों को याद रहे कि इस गांव में अब यह नहीं चलेगा।
पंचायत ने फैसले पर कड़ाई से अमल के लिए निगरानी समिति भी बना दी। शराबखोरी पर अंकुश लग गया। लेकिन हर अच्छे फैसले से कुछ लोगों को तकलीफ होती है, ऐसा पंचायत के इस फैसले को लेकर भी हुआ। दो महीने तक शराब बंदी पूरी तरह लागू रही, उल्लंघन करने वालों को चेतावनियां मिलीं। लेकिन कुछ लोगों ने पंचायत के फैसले के खिलाफ एसडीएम तक शिकायतें भेजीं।
यह तर्क दिए जाने लगे कि सामाजिक बहिष्कार जैसे फैसले पंचायत नहीं ले सकती। हालात फिर खराब होने लगे हैं। खुलेआम नहीं तो चोरी छिपे शराबखोरी शुरू हो गई है। एक अच्छे फैसले को मिले समर्थन के बाद उसकी अवहेलना होने लगने से रामबाई दुखी हैं लेकिन वे निराश नहीं हैं। पंचायत के सचिव तुलसीराम यादव ने दैनिक भास्कर से कहा कि हम अब कोई नया रास्ता निकालेंगे ताकि समाज को दुष्प्रवृत्ति से बचाने के पंचायत के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सके।
राम बाई कहती हैं हम जून के महीने में ही ग्रामसभा की बैठक में शराब बंदी के फैसले पर न केवल सहमति बनाएंगे बल्कि गांव की महिलाओं को इस अभियान में भागीदार बनाएंगे। आखिर यह गांव हमारा है और शराबखोरी से गांव के पुरूष और नौजवानों का जीवन भी तो खतरे में पड़ता है। उम्मीद की जाना चाहिए कि रामबाई के बुलंद हौसले के आगे शराबखोर पस्त होंगे और गांव में प्रगति की राह खुल सकेगी।