मंगलवार, 3 मई 2011
ओसामा नहीं रहे, पाकिस्तान तो है और अमेरिका भी
पूरी दुनिया को जंग और सिविल वारों में झौंकने वाले अमेरिका को दस साल तक तिगनी का नाच ता थैया ता थैया ता ता थैया थैया नचाकर अंततः ओसामा बिन लादेन कल देर रात अमेरिका के शूरवीरों के हाथों मारे गए। एक जुनून के लिए पूरी दुनिया को जंग का मैदान बनाने वाले अल कायदा के सरगना के मारे जाने से आतंक खत्म हो गया है, ऐसा समझने वाले नादान हैं। असल में अमेरिका ने ही पूरी दुनिया में बीते पचास साल में आतंक का नेटवर्क खुद ही खडा किया है। पाकिस्तान जहां लादेन रह रहा था, उसको हथियारों और आतंकी ट्रेनिंग चलाने का खर्चा तो आखिर अमेरिका ही दे रहा था। मुंबई में जब पाकिस्तानी आतंकियों ने कहर बरपाया तो अमेरिका का क्या रवैया अब तक रहा है! अमेरिका ने अफगानिस्तान में क्या किया, विश्व की सबसे विशाल बुदृध प्रतिमा को उडाने वाले तालिबानी हथियार आखिर थे तो अमेरिकी ही। अमेरिकी सत्ता अपने नागरिकों को जो सैनिक बनते हैं उन्हें भी वहां वहां जंग में धकेलती है जहां अमेरिका पहले प्रशिक्षण और हथियार दे चुका है। सददाम को ताकत अमेरिका ने ही दी और फिर मारा भी अमेरिका ने ही। जश्न मना रही अमेरिकी जनता को अपने यहां की सियासत के दो रंगे चेहरे को नहीं देखना चाहिए क्या। और क्या अमेरिका अब भी पाकिस्तान की मदद जारी नहीं रखेगा। दुनिया में अशांति और आतंक की जड अमेरिका ही है, यह बात सबको समझ ही लेना चाहिए। लादेन के मारे जाने में उल्लास का अतिरेक बेमतलब है, उसने जो बोया वो काटा लेकिन ऐसा अमेरिका के साथ भी नहीं हुआ क्या और आगे नहीं होगा क्या!
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