गुरुवार, 4 फ़रवरी 2010

यारो,वो भी राहुल है और एक ये भी राहुल

साब आजकल टीवी देखने का तो धरमई नईं बचा, जाने कैसे कैसे नाटक आते हैं, एक जमाना था बुनियाद, हम लोग, दाने अनारे के, मिर्जा गालिब, गणदेवता, कब तक पुकारूं, चाणक्य जैसे सीरियल आते थे। भोपाल बीना पैंसेजर के जनरल डिब्बे में दो युवा उम्र को पार कर अधेड अवस्था की दहलीज पर खडे लोग टाइम पास कर रहे थे। दूसरे ने बोला अब साब एकता कपूर के सीरियलों से मुक्ति मिल गई है कुछ ग्रामीण प्रष्ठभूमि वालेे सीरियल बालिका वधू जैसे और प्यार न होगा कम जैसे हम मध्य वर्ग वालों की बात कहने वाले सीरियल आने लगे हैं। लेकिन साब ये जो स्वयंवर टाइप के फूहड अफसाने शुरू हुए हैं, ये तो बिल्कुल नहीं झेले जा सकते। तीसरे ने चर्चा में हिस्सेदारी करने की कोशिश की। पहले सज्जन बोले- अरे अब एक और स्वयंवर शुरू हुआ है, आइटम गर्ल राखी सावंत की नोटंकी के बाद नया अवतार। इसमें भाजपा के महान नेता प्रमोद महाजन के नालायक पुत्र राखी की जगह स्वयंवर रचाने उतर रहे हैं। तीसरे सज्जन इस पर नाराज होते हुए कहने लगे-अरे जिस लडके ने अपने पिता की अस्थियों का कलश सामने रखकर शराब और स्मेक का नशा किया पिता के पीए की मौत हुई उस घटना में, इसके चंद रोज बाद अपनी मर्जी से लव मैरिज की ओर पत्नी बनी प्रेमिका को पीटा, तलाक हो गया; अब उसका स्वयंवर ये टीवी वाले करवा रहा है, हद है ये तो। दूसरे सज्जन ने कहा जो घटिया है वही बिकता है, मीडिया और मनोरंजन वाले इसी फार्मूले पे चलते हैं। तीसरे महाशय फिर बोले साब यही छिछोरे राहुल महाजन फिल्म एक्टर सचिन के साथ मंच पर जज बनकर भी बैठते रहे हैं। अरे साब ये तो संस्कार की बात है, राहुल गांधी को देख लो और इन राहुल महाजन को देख लो दोनों में कितना अंतर है। राहुल ने मंत्री पद नहीं लिया, देश भर में युवाओं को लोगों को जानने के लिए घूमता रहता है। कभी बडी बडी और झूठी बातें नहीं करता। यह बातचीत चल रही थी कि चैथे सज्जन कूद पडे चर्चा में। तनिक गुस्से में बोले- आप तो भाई साब कांग्रेसी लग रहे हैं, इसलिए राहुल बाबा की तारीफ कर रहे हैं। इस माहौल में एक बुजुर्ग बोले देखो साब अपना स्टेशन आने में पांच मिनिट हैं, राजनीति की बात मत करो, तबियत पहले से ही ठीक नहीं है, और खराब हो सकती है। इस पर बाकी सब यात्री एक सुर में बोले हां भाई राजनीति की बातें तो करो ही मत, यही तो सब गडबड की जड है। बंबई में हिंदी वालों को मारने वाले ठाकरे कुनबे को न ये कांग्रेसी कुछ कह पाते हैं और न ही भाजपा वाले, बस पाकिस्तान को गालियां दिलवा लो, हरकतें उसकी भी बंद नहीं कर पाते और इन ठाकरे परिवार की गुंडागर्दी को ही रोक पाते। मुझे विदिशा उतरना था, चर्चा में भाग ले रहे चार में से दो भी उतर गए। ट्रेन चलने को ही तो चर्चा बंबई की शुरू हो गई।

सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

अरे खां अपना सैफू तक पदमसिरी हो गया


एक दिन सुबह सुबह में भोपाल की सब्जी मंडी पहुंच गया, गरज थी आसमान पर टंगे सब्जी के भाव मंडी में थोडे से नीचे नजर आ जाते हैं। महंगाई का रोना नहीं सुनाउंगा, वो सुनिए जो मैंने वहां सुना। एक सब्जी वाले ने दूसरे से कहा- सुनो खां अपना सेफू पदमसिरी हो गया है। दूसरे ने कहा कौन सेफू! पहला बोला अरे वो फिलमों में आता है हैगा, अपने नब्बाव पटौदी का बेटा, राजकपूर की बोती का नाम गुदवा कर घूमता हैगा। दूसरे ने पूछा अरे खां ये पदमसिरी क्या होता हैगा, कोई नई फिलिम बना रिया है क्या पटौदी का पूत। पहला बोला- अमां इसीलिए तो केते हैंगे कुछ पेपर वेपर पढाकरो, देनिक भासकर नईं पढा आज का, उसमे छपा है पदमसिरी इस साल किस किसको मिला है, सुनते हैं बडे काम और नाम वालों को मिलता है, ईडियट, तारे जमीन पे बनाई तो आमिर खान को भी पदम वाला इनाम मिला है, लेकिन सेफू से छोटा वाला। दूसरा बोला अमां पदम फदम तो हम नई जानते ये .....महंगाई मारे डाल रई है, सरकार आंखों में पटटी बांधकर ओर कानों में रूई फसाके बैठ गई है। पहले ने सुर मिलाकर कहा मियां के तो सई रए हो, ये ....सरकार ....करे डाल रई है। दोनों सब्जी वाले ग्राहकी में जुट गए और हम हर सब्जी पर चार आठ आने बचाने की जददोजहद में लग गए, पदम सिरी का मसला खत्म हो गया।
सुना है पदमश्री बांटने वालों को इससे मतलब नहीं होता कि कौन किस क्षेत्र में दिग्गज है, या उसका क्या अवदान है, उन्हें तो बस इससे मतलब होता है कि एप्रोच किसकी लगी है। सब जानते हैं सैफ अली पटौदी कैसे और किस दर्जे के कलाकार हैं, फिल्मों में उनका क्या योगदान है, सामाजिक तौर पर वे कितने जिम्मेदार हैं, उनके पिताजी अर्थात टाइगर पटौदी को भोपाल से कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में उतारा था, भोपाल नवाब के नवासे पटौदी को भोपाल के मतदाताओं ने लाखों वोटों से हरा दिया था, कांग्रेस अब भी निभा रही है, पटौदी पुत्र को पदमश्री से नवाजा गया। कहते हैं पुरस्कार की आबरू पुरस्कार पाने वाले से बढती है, अब कोई ढंग का आदमी पदम पुरस्कार न मिल जाए इससे बचता फिरने लगे तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। रही बात ठाकरे की तो वे महाराष्ट में साइड लाइन हो गए हैं, देश की उन्हें चिंता होती तो बाकी 25 राज्यों के नागरिकों से पाकिस्तान टाइप व्यवहार उनकी पार्टी और उनके भतीजे की पार्टी नहीं करती, ठाकरे से तो अपना टेटू वाला सेफू ही भला, बेचारा किसी को भाषा, प्रांत के आधार पर पीटने का आव्हान तो नहीं कर रहा, रही बात पदम पुरस्कारों की तो जो वाकई समाज में कुछ करना चाहते हैं, करते हैं पुरस्कारों के मोहताज नहीं होते।