- सतीश एलिया
कश्मीर के पहलगाम में 27 पर्यटकों की हिन्दू होने पर गोली मारकर हत्या ने देश में भारी गुस्से और पाकिस्तान से एक और युद्ध की नौबत के हालात हैं। 1947 में अधूरे भारत-पाकिस्तान विभाजन से अब तक हुए भारत पाकिस्तान के बीच चार युद्धों और पाकिस्तानी प्रशिक्षित आतंकवाद की पहलगाम जैसी सैकड़ों वारदात में कुछ नया है तो ये कि गोली मारने से पहले एक सवाल पूछा गया और उसका सही जबाव देने पर भी मौत और गलत जबाव देने पर जांच में फेल होने पर भी मौत। भारत सरकार की बदला लेने या मरने वालों के परिवारों को न्याय मिलकर रहेगा की प्रतिज्ञा और विपक्ष के नेताओं की पहले एकजुटता और चार दिन बाद ही साजिश कर्ता पाकिस्तान की हिमायत करती सी बयानबाजी के बीच कुछ बुनियाद सवाल हमें अपने आप से करने का भी वक्त है। जो कलमा न पढ़ पाने और खतना न होने के कारण मारे गए, उनके प्रति पूरी सहानुभूति और उनके परिवारों के दुख के साथ पूरी संवेदना होने के बावजूद सवाल ये भी है कि चार बंदूकधारी जाहिल 27 लोगों पर भारी पड़ गए। आतंकियों के आदेश पर पेन्ट उतारने वाले किसी ने भी मर्दानगी नहीं दिखाई, बंदूक छीनने की कोशिश क्यों नहीं की? कोई तानाजी, संभाजी क्यों नहीं बना? किसी की भी पत्नी ने अपने सुहाग को बचाने जाहिल इस्लामिक आतंकियों से भिड़ने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाई? अभी अभी तो पूरे देश ने वीर शिवाजी के पुत्र संभाजी के जीवन पर बनी फिल्म ' छावा' देखी थी। आतताई विदेशी आक्रांता इस्लामिक जिहादी औरंगजेब के खिलाफ आक्रोश से भर गए थे और संभाजी के जयकारे पापकार्न खाते हुए थियेटरो में लगाए थे। ये जो 27 मारे गए, उनमें से ज्यादातर ने ' छावा' , बार्डर इत्यादि देखी ही होगीं न! अपने पतियों को मारे जाते देख रोने वाली वारांगनाएँ वीरांगनाएँ क्यों नहीं बनीं? एक आदिल हुसैन विदेशी आतंकवादियों से कैसै भिड़ गया? क्या तत्कालीन सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह ' रज्जाक भैया' ने एक बार हिन्दुओं को कायर कहा था, तो सच ही कहा था। विचार करके देखिए तरह तरह जाहिल विदेशी आक्रांताओ ने भारत पर तकरीबन 1200 साल राज किया तो इसके पीछे जाहिलियत का वीरता से मुकाबला न कर पाना ही अहम और सबसे प्रमुख कारण रहा था। शिवाजी, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा , लक्ष्मीबाई जैसै अप्रतिम शौर्य के प्रेरक उदाहरणों से कई गुना ज्यादा उदाहरण गद्दारी और कायरता के हैं। आज भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान में जितने तरह के और जितने मुसलमान हैं उनमें से 99 फीसदी वे ही हैं जिनके पूर्वज किसी आध्यात्मिक स्वीकार्यता या राजी खुशी से नहीं बल्कि ऐसे ही कायरता के चलते कन्वर्ट हुए थे। जब तक हम भारत के सदियों गुलाम रहने, भारत के विभाजन की असल जड़ को नहीं समझेंगे तब तक 'पहलगाम ' होते ही रहेंगे। सेना की सुरक्षा समूचे देश को नहीं सीमा पर ही होनी चाहिए, देश में तो नागरिको को ही वीरता से आतंकवाद से दो दो हाथ करने लायक बनना होगा। स्कूलों, कालेजों, विश्वविद्यालयों में सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य करे बिना ये संभव नहीं। राष्ट्रीय कैडेट कोर ( एनसीसी) की अभी क्या स्थिति है? बीते 78 साल में स्कूल, कालेज, विवि और कुल विद्यार्थियों की संख्या में जितनी वृध्दि हुई है, उसकी तुलना में एनसीसी कैडेट्स की संख्या कितनी बढी? आज 140 करोड़ आबादी वाले हमारे देश में स्कूल कालेजों में करीब 31 करोड़ विद्यार्थी हैं। इनमें से करीब 12 लाख एनसीसी कैडेट्स हैं। यानी देश की आबादी में एनसीसी कैडेट्स करीब 1.11 प्रतिशत हैं और विद्यार्थियों की संख्या में से 2.58 फीसदी विद्यार्थी ही कैडेट्स हैं। हमारे देश में उच्च शिक्षा संस्थान लगातार बढ़ते जा रहे हैं। उनमें प्रवेश की परीक्षाओं की तैयारी के संस्थान और फीस भी लगातार बढते जा रहे हैं। माता पिता बच्चो के अच्छे संस्थानों में प्रवेश, विदेश में पढ़ाई के बाद देशी विदेशी कंपनियों में पैकैज और नौकरियों को जीवन का लक्ष्य बना रहे हैं और बच्चे भी वही कर रहे हैं। बच्चों को प्रतियोगी प्रवेश परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग को प्राथमिकता देने उनके हायर सेकंडरी स्कूलो के लिए डमी स्कूल में एडमिशन कराए जाते हैं। ऐसे प्रवेशकामी और पैकैजकामी माता-पिता और युवा जिहाद ट्रेंड जाहिल आतंकवादियों से कैसै मुकाबला कर सकते हैं? अखाड़े व्यायामशाला अतीत की बात हो रहे हैं, जिम और स्ट्रायड से दिखलौट देह का आकर्षण बढ़ रहा। युवाओ के विवाह का आधार पैकैज बन रहे हैं, हनीमून मनाते जोड़ों से कलमा सुनाने की फरमाइश करने और पेन्ट उतरवाकर सुन्नत( खतना) चेक करने वाले जाहिल इस्लामिक जिहादियो के हाथों मारे जाने के अलावा लडकर मरने का विकल्प कैसै उनके जेहन में आता, उन्होंने आतंकवाद के आगे हार मान ली और मारे गए। 27 लोग बंदूक छीनने का प्रयास करते एकाध को मार पाते पकड़ पाते भले ही सब मारे जाते तो एक मिसाल बनती, लेकिन आतंकवादियो से भिड़ने की हिम्मत दिखाई और वीर की तरह जो अट्ठाइसवा मारा गया वो कलमा भी जानता था, सुन्नत भी थी, लेकिन वो उसी की तरह कलमे वाले आतंकियों जैसा नहीं था, न ही आतंकवाद को पैसे के लिए कलमे के लिए साथ देने वाले स्थानीय गद्दारो की तरह था। काश ! वे 27 भी लडकर मरते या अब विलाप कर रही उनकी पत्नियाँ वीरांगना बनती और पतियों को बचाती या खुद भी शहीद हो जाती। हम अपनी संतानों को कब वीरता का मंत्र , प्रशिक्षण और हौसला दे सकेंगे? सरकार को अब सैनिक प्रशिक्षण अनिवार्य करना ही होगा। तभी हम मुक्कमल जबाव दे सकेंगे तब ऐसे "पहलगाम " नहीं होगें, वीरता भरे होगें, सेना की तरह हर भारतीय पाकिस्तान या भारत के किसी और दुश्मन को सटीक जबाव दे पाएगा।