रविवार, 27 फ़रवरी 2011

नाम बड़ा या काम भोपाल या भोजपाल

अतीत सबको अपनी तरफ खींचता है.वर्तमान और भविष्य से भी ज्यादा इतिहास में दिलचस्पी विकास को बाधित करती है। इतिहास के विद्यार्थी और प्रोफ़ेसर रूचि ज्यादा लें तो ठीक भी है। सरकारें खासकर बीजेपी कि सरकारें अतीत पे जोर देतीं हैं। भोपाल का नाम भोजपाल करने की तैयारी में है शिवराज सरकार। जाहिर है एजेंडा संघ का है। धार के राजा रहे भोज की भोपाल के ताल में नबाबी काल के किले के बुर्ज़ पे स्थापित प्रतिमा का सोमवार को अनावरण होगा। सरकार भारी धन खर्च कर जलसा कर रही है। भोपाल का नाम भोपाल हो या भोजपाल इससे क्या फर्क पड़ता है। केंद्र में ६ साल सरकार में रही बीजेपी ने भारत का दुनिया भर में नाम इण्डिया होने को क्यों नही बदला। जहाँ तक हकीकत की बात है तो भोपाल पडोस के राज्यों की राजधानियों के मुकावले कहाँ है। जयपुर ,अहमदाबाद.बेंगलूर.हैदराबाद सूरत शहरों से तुलना करो तो पिछड़ा है भोपाल। जयपुर में परसों ही मेट्रो रेल के काम का शिलान्यास हुआ। फिर कलकत्ता का नाम इसलिए बदला गया क्योंकि अँगरेज़ कोल्कता को केलकटा कहते थे। तिरुंन्तपुरम को त्रिवेन्द्रम,मुम्बा देवी के नाम पर बसे मुंबई को बॉम्बे कहते थे बेंगुलुरु को बैगलोर कहते थे। हम भी कहने लगे। आजाद होने के सालों बाद भी कहते रहे। जनता के समर्थन से नाम बदले गये और चलने लगे। लेकिन भोपाल को अंग्रेजों ने भोपाल नाम नही दिया। भूपाल या भोजताल या भोजपाल का अपभ्रंश हो सकता है। इस तरह तो उज्जैन का नाम उज्जयिनी ,महेश्वर का महिष्मति , धार का धारा नगरी, लखनऊ का लखनपुर नाम करना होगा। बचपन में स्कूल में कहानी पड़ते थे हम लोग नाम बड़ा या काम। लगता है शिवराज इस कहानी को भूल गये है। इतिहास ये भी है की मध्यप्रदेश जब बना तो जिन राज्यों से मिलकर बना उनमें भोपाल स्टेट भी शामिल है। क्या अपनी पसंद का इतिहास चलाने की मंशा एक दिन मध्यप्रदेश का भी नाम बदलने की चेष्टा नही करने लगेगी।